ग्रहों में सबसे अधिक गति से चलने वाला चंद्रमा मन का प्रतिनिधित्व करता है। चन्द्र माता, मन, मस्तिष्क, बुद्धिमता, स्वभाव, जननेन्द्रियों, प्रजनन सम्बन्धी रोगों, गर्भाशय इत्यादि का कारक है। यदि चन्द्रमा कृष्ण पक्ष का नीच या शत्रु राशि में हो तथा अशुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो चंद्रमा निर्बल हो जाता है। ऎसी स्थिति में निद्रा व आलस्य घेरे रहता है एवं व्यक्ति मानसिक रूप से बेचैन, मन चंचलता से भरा रहता है मन में भय व्याप्त रहता है। चंद्रमा के विभिन्न मंत्र
" ऊँ दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णवसम्भवम।
भाशिनं भवतया भाम्भार्मुकुट्भुशणम।। "
ॐ अमृतांगाय विद्महे कला रूपाय धीमहि तन्नो सोमः प्रचोदयात्।
" ऊँ स्रां स्रीं स्रौं स: चन्द्रमासे नम:
"ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:"।।
चंद्रमा ग्रह का रत्न मोती है। इसे चंद्रमा संबंधी दोषों के निवारण के लिए पहनते हैं। जिसकी जन्मंकुंडली में चंद्रमा क्षीण, दुर्बल या पीडि़त हो उन्हें मोती अवश्य धारण करना चाहिए। मोती के उपलब्ध न होने पर इसके स्थान पर चंद्रकांत मणि या सफेद पुखराज धारण किया जा सकता है। लेकिन ध्यान रहे कि मोती और उसके विकल्प के साथ हीरा, पन्नाा, गोमेद, नीलम और लहसुनिया कभी धारण नहीं करना चाहिए।