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केतु

केतु का सीधा प्रभाव मन से है अर्थात् केतु की निर्बल या अशुभ स्थिति चंद्रमा अर्थात् मन को प्रभावित करती है और आत्मबल कम करती है। केतु से प्रभावित व्यक्ति अक्सर डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं। भय लगना, बुरे सपने आना, शक्‍की वृत्ति हो जाना भी केतु के ही कारण होता है। केतु और चंद्रमा की युति होने से व्यक्ति मानसिक रोगी हो जाता है। व्यसनाधीनता बढ़ती है और मिर्गी, हिस्टीरिया जैसे रोग होने की आशंका बढ़ जाती है। इस ग्रह की शांति के लिए निम्न मंत्र लाभकारी हैं -:

वैदिक मंत्र:

“ऊँ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेश से। सुमुषद्भिरजायथा:”

गायत्री मंत्र

“ऊँ धूम्रवर्णाय विद्महे कपोतवाहनाय धीमहि तन्नं: केतु: प्रचोदयात।”

बीज मंत्र

“ऊँ कें केतवे नम:”

तांत्रिक मंत्र

“ऊँ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं स: केतवे नम:”

“ह्रीं केतवे नम:”

“कें केतवे नम:”

केतु ग्रह की शांति के उपाय:
  • केतु से बचने का सबसे अच्छा उपाय है हमेशा प्रसन्न रहना, जोर से हँसना। इससे केतु आपके मन को वश में नहीं कर पाएगा।
  • प्रतिदिन गणेशजी का पूजन-दर्शन करें।
  • लहसुनिया पहनने से भी केतु के अशुभ प्रभाव में कमी आती है।
  • काले, सलेटी रंगों का प्रयोग न करें।
  • लोगों में उठने-बैठने, सामाजिक होने की आदत डालें।
 
बारह घरों में केतु का प्रभाव
 
रत्‍न

लहसुनिया केतु का रत्न है। जन्मकुंडली में केतु के दूषित होने, दुर्बल होने या अस्त होने पर लहसुनिया रत्न पहनना लाभकारी होता है। यदि कोई लहसुनिया खरीदने में असमर्थ है तो वह संगी, गोदंत और गोदंती धारण कर सकता है। इसके अलावा दरियाई लहसुनिया अर्थात टाइगर्स आई भी इसके स्थान पर धारण किया जा सकता है।

 
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