कुंडली के नवम् भाव में सूर्य और राहु की युति होने पर पितृ दोष योग बनता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सूर्य और राहु जिस भी ग्रह में बैठते हैं, उस भाव के सभी फल नष्ट हो जाते हैं। नौवां घर धर्म का होता है, इसे पिता का घर भी कहा जाता है। माना जाता है कि यदि कुंडली का नौंवां घर खराब ग्रहों से ग्रसित हो तो यह पूर्वजों की अधूरी इच्छाओं का सूचक है। इसे ही पितृदोष कहा जाता है।
कारण - अगर आपके द्वारा किसी सत्पुरूष, बाह्मण या कुलगुरु का अनादर किया गया है तो आप पितृ दोष से पीडित होते हैं। गोहत्या और पितरों को जल अर्पित न करना भी इस दोष का मुख्य कारण है।
पितृदोष एक ऐसा दोष है जिसमें जातक की बुद्धि नष्ट हो जाती है और उसका जीवन केवल समस्याओं के इर्द-गिर्द ही घूमता रहता है। ये जातक बड़े-बुजुर्गों का अपमान करते हैं और दूसरों की भावनाओं की अवहेलना करने से भी नहीं चूकते। इन्हें पैसों की कमी तो रहती ही है साथ ही ये अपने निजी जीवन में भी खुशी नहीं पाते। अधिकतर यह व्यक्ति मानसिक आघात से परेशान रहते हैं। इस दोष से ग्रस्त होने पर जातक अपने परिवारजनों से झगड़ा और घर में क्लेश करता है।
जिस घर अथवा जातक पर पितृदोष होता है उस स्थान पर पुरूष सदस्यों की संख्या में कमी आने लगती है। परिवार में लड़ाई-झगड़ा और क्लेश का माहौल रहता है। इस दोष से पीडित जातकों को संतान की ओर से हानि होती है। विवाह में देरी, संतान प्राप्ति में बाधा और पैसों में बरकत न होने जैसी समस्याएं झेलनी पड़ती हैं। ऐसे जातकों के घर की दीवारों में हमेशा टूट-फूट एवं सीलन रहती है एवं यहां सूर्य की रोशनी कम पड़ती है। शास्त्रों के अनुसार जिस घर में मास-मदिरा का सेवन किया जाता है तो वहां भी पितृदोष के कारण परिवार के सदस्यों को अत्यधिक कष्ट भोगने पड़ते हैं।
पितृदोष काफी अमंगलकारी दोष है। इसके प्रभाव में किसी भी मनुष्य का जीवन नर्क के समान हो जाता है। वह न तो अपने निजी जीवन में सुख का आनंद ले पाता है और न ही आर्थिक रूप से सशक्त होने में सक्षम रहता है। इस दोष के प्रभाव में विवाह में देरी, मानसिक पीड़ा और घर में कलह जैसी समस्याएं आती हैं। पितृदोष ऐसा कष्ट है जिसमें मनुष्य हर समय हार का सामना करता है।