ज्योतिष शास्त्र के अनुसार राहु ग्रह का संबंध नाग से है। राहु के प्रभाव से उत्पन्न होने वाले दुर्योगों को ही नाग दोष कहा जाता है। जब कुंडली में राहु और केतु पहले घर में, चन्द्रमा के साथ या शुक्र के साथ विराजमान हों तो ऐसी स्थिति में नाग दोष बनता है। कुंडली में इस दोष के बल तथा स्थिति के आधार पर ही जातक को कष्ट और इसके अशुभ फल मिलते हैं।
कई लोगों में भ्रम रहता है कि कालसर्प और नागदोष एक समान हैं किंतु यह सत्य नहीं है। कालसर्प दोष वंशानुगत होता है जबकि नाग दोष का प्रभाव जातक की मृत्यु के बाद भी प्रभावकारी रहता है। इसके अलावा अन्य सात ग्रहों के राहु या केतु के साथ युति होने पर कालसर्प दोष बनता है वहीं दूसरी ओर पहले, दूसरे,पांचवें, सातवें और आठवें घर में राहु-केतु के प्रवेश पर नाग दोष जन्म लेता है।
नाग दोष से प्रभावित जातकों के वैवाहिक जीवन में अड़चनें आती हैं, विवाह में देरी एवं कुछ मामलों में इनका तलाक भी संभव है। महिलाओं के लिए यह दोष किसी श्राप से कम नहीं होता। इस दोष के प्रभाव में महिलाओं के गर्भपात की अत्यधिक संभावना रहती है। इनके जीवनसाथी का स्वास्थ्य बिगड़ा रहता है। इन जातकों को स्वप्न में सांप दिखाई देते हैं एवं इनका मानसिक विकास भी धीमी गति से होता है। इस दोष से ग्रस्त जातक की संतान ही उसकी विरोधी बन जाती है। यह व्यक्ति बुरे कर्मों में लिप्त रहता है।
नाग दोष होने पर जातक को कोई पुराना एवं यौन संचारित रोग होता है। इन्हें अपने प्रयासों में सफलता प्राप्त नहीं होती। नाग दोष का अत्यंत भयंकर प्रभाव है कि इसके कारण महिलाओं को संतान उत्पत्ति में अत्यधिक परेशानी आती है। व्यक्ति की गंभीर दुर्घटना संभव है। इन्हें जल्दी-जल्दी अस्पताल के चक्कर लगाने पड़ते हैं एवं इनकी आकस्मिक मृत्यु भी संभव है। इन जातकों को उच्च रक्तचाप और त्वचा रोग की समस्या रहती है।
नाग दोष का अत्यधिक नुकसान महिलाओं को होता है। इस दोष के प्रभाव में महिलाओं को संतान प्राप्ति में परेशानी आती है। सेहत ज्यादातर खराब रहती है।