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चंडाल दोष



 
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क्‍या है चंडाल योग ?

गुरु ज्ञान एवं बुद्धि प्रदान करता है तो वहीं राहु छाया ग्रह है जो सदा अनिष्‍ट फल देता है। माना जाता है कि बृहस्‍पति देवताओं के गुरु हैं और राहु राक्षसों के गुरु हैं। इन दोनों ग्रहों का किसी भी तरह से संबंध होने पर गुरु चंडाल योग का निर्माण होता है। कुंडली में गुरु और राहु की युति होने पर यह योग बनता है। राहु के प्रभाव में आकर गुरु भी अनिष्‍ट फल देने लगता है। चंडाल को नीच समझा गया है एवं कहा जाता है कि इसकी छाया भी संसार या गुरु को अशुद्ध कर सकती है।

प्रभावित जातक -

जैसा कि हमने पहले भी बताया है कि चंडाल योग में जातक अपने ही गुरु से ईर्ष्‍या भाव रखता है। इसके प्रभाव में जातक का पराई स्त्रियों में मन लगता है एवं वह चरित्रहीन बनता है। इसके अलावा जातक चोरी, जुआ, सट्टा, अनैतिक कार्यों, नशा और हिंसक कार्यों में लिप्‍त रहता है।

प्रभाव

कुंडली में चंडाल योग के बनने पर जातक अपने गुरू का अनादर करता है एवं उनके प्रति ईर्ष्‍या भाव रखता है। यदि कुंडली में राहु मजबूत स्थिति में है तो जातक अपने गुरू के कार्य को ही अपनाता है किंतु वह गुरू के सिद्धांतों को नहीं मानता, शिष्य अपने गुरू के कार्य को अपना बना कर प्रस्तुत करते हैं एवं शिष्यों के सामने ही गुरू का अपमान होता है और शिष्य चुपचाप ये सब देखते रहते हैं। वहीं दूसरी ओर राहु के कमजोर होने की स्थिति में जातक अपने गुरू को सम्‍मान देता है। राहु के आगे गुरू का प्रभाव काफी कमजोर पड़ जाता है। गुरू, राहु के दुष्‍प्रभाव को रोक पाने मे असफल रहता है।

उपाय

  • राहु ग्रह का जप-दान करने से लाभ होगा।
  • गाय को भोजन कराएं एवं नियमित हनुमान चालीसा का पाठ करें।
  • कोई भी महत्‍वपूर्ण निर्णय लेते समय बड़ों की राय अवश्‍य लें।
  • अपनी वाणी पर नियंत्रण रखें एवं प्रसन्‍न रहें।
  • बड़े-बुजुर्गों का सम्मान करें और अपने माता-पिता का आदर करें।
  • अपने गुरु की निस्‍वार्थ भाव से सेवा करें।
  • नियमित रूप से स्वयं हल्दी और केसर का टीका लगाने से लाभ होगा।
  • गरीब बच्‍चों की पढ़ाई में मदद करें।
  • भगवान गणेश और देवी सरस्वती की आराधना करें और मंत्र का जाप करें।
  • बरगद के वृक्ष में कच्चा दूध डालें और केले के वृक्ष का भी पूजन करें।
 
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