शरद नवरात्रि 2020 – 165 साल बाद बन रहा है यह अद्भुत योग

वर्ष 2020 में अधिकमास के चलते कई पर्व देरी से आ रहे हैं, उन्हीं में से है एक शरद नवरात्रि। इस वर्ष पितृपक्ष 17 सितंबर 2020 को खत्म होने के बाद अधिकमास लग जाएगा, जो 16 अक्टूबर 2020 तक चलेगा उसके बाद ही माँ के नौ रूपों की उपासना का यह पर्व 17 अक्टूबर, शनिवार से शुरू होनेवाला है। वैसे तो एक वर्ष में चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ के महीने में कुल चार बार नवरात्र आते है लेकिन चैत्र और आश्विन माह के महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक पडने वाले नवरात्रि काफी लोकप्रिय है। शारदीय नवरात्रि की शुरुआत सर्वप्रथम श्री रामचंद्रजी ने की थी। आदिशक्ति के हर रूप की नवरात्रि के नौ दिनों में क्रमशः अलग अलग पूजा की जाती हैं:-

आइए जानते हैं शरद नवरात्रि की तिथियाँ  

1

प्रतिपदा

माँ शैलपुत्री पूजा

17 अक्टूबर

शनिवार

2

द्वितीय

ब्रह्मचारिणी

18 अक्टूबर

रविवार

3

तृतीया

चंद्रघंटा

19 अक्टूबर

सोमवार

4

चतुर्थी

कुष्मांडा

20 अक्टूबर

मंगलवार

5

पंचमी

स्कंदमाता

21 अक्टूबर

बुधवार

6

षष्ठी

कात्यायनी 

22 अक्टूबर

गुरूवार

7

सप्तमी

कालरात्रि

23 अक्टूबर

शुक्रवार

8

अष्टमी

महागौरी

24 अक्टूबर

शनिवार

9

नवमी

माँ सिद्धिदात्री

25 अक्टूबर

रविवार

10

दशमी

दुर्गा विसर्जन

26 अक्टूबर

सोमवार

 पौराणिक मान्यता

शास्त्रों और पौराणिक मान्यता के अनुसार नवरात्रि में ही भगवान श्रीराम ने देवी शक्ति की आराधना कर दुष्ट और क्रूर राक्षस रावण का वध किया था और समाज में रहने वाले लोगों को यह संदेश दिया था कि बुराई पर हमेशा अच्छाई की जीत होती है।

आइए जानते है देवी नवदुर्गा के नौ रूपों के बारे में

1-शैलपुत्री

माँ दुर्गाजी के पहले स्वरुप को शैलपुत्री के नाम से लोग पूजते है। मां शैलपुत्री चंद्रमा को दर्शाती हैं और इनकी पूजा से चंद्रमा से संबंधित सभी प्रकार के दोषों से मुक्ति मिलती हैं। नवरात्रि के पावन दिनों में सबसे प्रथम दिन इन्ही की पूजा और उपासना की जाती है। इस दिन पीले रंग के वस्त्र का विशेष महत्व होता हैं।  

2- ब्रह्मचारिणी

ब्रह्मचारिणी की पूजा नवरात्रि के दूसरे दिन की जाती है। श्रद्धालू इस दिन अपने मन के श्रद्धा भाव माँ के चरणों में अर्पित करते है। ज्योतिष की माने तो, इस दिन मंगल से संबंधित सभी प्रकार के दोषों से मुक्ति मिलती हैं। ब्रह्मचारिणी के नाम से हे प्रतीत होता है की इसका अर्थ है तपस्या और आचरण। इस देवी के दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएँ हाथ मे कमंडल रहता है। इनकी छवि बहुत ही शोभनीय दिखती है। इस दिन हरे रंग का विशेष महत्व होता हैं।

3- चंद्रघंटा

 नवरात्रि के तीसरे दिन माँ चंद्रघंटा की उपासना की जाती है। देवी चंद्रघंटा शुक्र ग्रह को नियंत्रित करती हैं, इसकी पूजा से शुक्र से संबंधित दोषों से मुक्ति मिलती हैं। देवी का यह स्वरुप बहुत ही शांतिपूर्ण और कल्याणकारी है। मस्तिष्क पर घंटे का आकार का अर्धचन्द्र है, इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा के नाम से लोग पूजते है। इस दिन भूरे रंग का विशेष महत्व होता हैं।

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4- कुष्मांडा

नवरात्रि के चौथे दिन देवी कुष्मांडा की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन पवित्र और चंचल रहता है। इस दिन सूर्य की पूजा करने से सूर्य के दोषों से जातक का बचाव होता हैं। इनके तेज और प्रकाश से सभी दिशाएँ प्रकाशित हो जाती है। माँ की आठ भुजाएं है, इसलिए ये अष्टभुजा देवी के नाम से ही प्रसिद्ध है। इनका वाहन सिंह है। इनके सात हाथों में क्रमश: कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण, कलश, चक्र तथा गदा है। इनकी भक्ति से आयु, बल में वृद्धि होती है और स्वास्थ्य अच्छा रहता है। इस दिन नारंगी रंग का विशेष महत्व होता हैं।

5- स्कंदमाता

भगवान स्कन्द कुमार कार्तिकेय नाम से भी जाने जाते है। देवी स्कंदमाता बुध ग्रह को नियंत्रित करती हैं।  बुध ग्रह के दुष्प्रभाव कम करने के लिए नवरात्रि के पांचवे दिन स्कंदमाता की उपासना की जाती है। पुराणों में इन्हें कुमार और शक्ति कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है। इन्ही भगवान स्कन्द की माता होने के कारण माँ दुर्गाजी के इस स्वरुप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है। माता स्कन्दमाता की पूजा अर्चना से भक्त को  परम सुख की प्राप्ति होती है। इस दिन सफ़ेद रंग का विशेष महत्व होता हैं।

6- कात्यायनी

नवरात्रि के पावन पर्व के छठे दिन देवी कात्यायनी की पूजा की जाती है। इनके  पूजन से अद्भुत शक्ति का संचार होता है तथा प्रत्येक सर्व साधारण साधक के लिए यह आराधना श्रेष्ठ मानी गयी है। देवी कात्यायनी बृहस्पति ग्रह को नियंत्रित करती हैं। कात्यायनी की पूजा से बृहस्पति के बुरे प्रभाव कम होते हैं। इनके पूजन से अद्भुत शक्ति का संचार होता है तथा दुश्मनों का संहार करने में ये सक्षम बनाती है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में छठे दिन इसका जाप करने से मनवांछित इच्छाएं पूर्ण होती है। इस दिन लाल रंग का विशेष महत्व होता हैं।

7- कालरात्रि

माँ दुर्गा की सातवी शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है। दुर्गा पूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है। देवी कालरात्रि शनि ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से शनि के बुरे प्रभाव से जातक का बचाव होता हैं। इसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। माँ कालरात्रि का स्वरुप देखने में अत्यंत भयानक है, लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली है। इसी कारण इनका नाम शुभंकारी भी है। अतः इनसे भक्तों को किसी प्रकार भी भयभीत अथवा आतंकित होने की जरुरत नहीं है, इनकी कृपा से जातक के जीवन में काफी बदलाव आते है तथा ग्रह बाधा दूर हो जाती है। इस दिन नीले रंग का विशेष महत्व होता हैं।

8- महागौरी-

दुर्गा पूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना की जाती है। राहू ग्रह को नियंत्रित कर उससे मिलने वाले बुरे प्रभाव को खत्म करने के लिए महागौरी की पूजा करनी चाहिए। इनकी उपासना से सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते है। माँ महागौरी का ध्यान, स्मरण, पूजा-अर्चना भक्तों के लिए सर्वविध कल्याणकारी है। महागौरी भक्तों का कष्ट अवश्य ही दूर करती है। इनके चरणों में हमें सुख की अनुभूती होती है। इस दिन गुलाबी रंग का विशेष महत्व होता हैं।

9- सिद्धिदात्री

सिद्धिदात्री माँ दुर्गाजी की नौवी शक्ति का नाम है। ये सभी प्रकार की परेशानियों का खात्मा करने का काम करती है। केतु ग्रह को नियंत्रित कर उससे मिलने वाले बुरे प्रभाव को खत्म करने के लिए सिद्धिदात्री की पूजा करनी चाहिए। माँ सिद्धिदात्री ब्रह्माण्ड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने का सामर्थ्य साधक के अंदर जागृत करती है। सभी साधकों का यह कर्तव्य है की वह माँ सिद्धिदात्री की कृपा प्राप्त करने के लिए सतत प्रयत्न करे उनकी आराधना करें, देवी सिद्धिदात्री की कृपा से जीवन के सारे दुःख समाप्त हो जाते है। इनके आशीर्वाद से साधक सुखों का भोग करता हुआ मोक्ष को प्राप्त करता है। इस दिन बैंगनी रंग का विशेष महत्व होता हैं।

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