छठ पूजा 2020 – सूर्यदेव की आराधना का पर्व, जानिए मुख्य बातें

छठ  पूजा मुहूर्त

20 नवंबर 2020शुक्रवार के दिन छठ पूजा का पर्व मनाया जाएगा

20 नवंबर 2020 (संध्या अर्ध्य) सूर्यास्त का समय- 05 बजकर 25 मिनिट 26 सेकेंड

21 नवंबर 2020 (उषा अर्ध्य) सूर्योदय का समय- प्रात: 6 बजकर 48 मिनट 52 सेकेंड

छठ पूजा का महत्व

बिहार और उत्तर प्रदेश में विशेष रूप से मनाई जाने वाली छठ पूजा में सूर्य देव की आराधना का बड़ा महत्‍व है।  यह पर्व दिवाली के 6 दिन के बाद मनाया जाता है। इस पर्व की रौनक बिहार-झारखंड के अलावा देश के कई हिस्सों में भी देखने को मिलती है। इस बार छठ पर्व शुक्रवार के दिन 20 नवंबर 2020 को मनाया जा रहा है। इस दिन उगते सूर्य को जल चढ़ाने और पूजा करने की परंपरा है। मान्‍यता है कि सूर्यदेव को अर्ध्य देने से धार्मिक ही नहीं अपितु स्‍वास्‍थ्‍य लाभ भी होते हैं। आज हम आपको बताते हैं कि देवी षष्ठी कौन हैं और इसकी उत्पत्ति कैसे हुई तथा सूर्य को जल चढ़ाने से किस प्रकार का पुण्य मिलता हैं।

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छठ पूजा विधि

जो भी जातक छठ पूजा का व्रत करते हैं, उनके लिए निम्न सामग्री जुटाकर फिर सूर्य देव को विधिवत अर्ध्य देना चाहिए

  • बांस की 3 बड़ी-बड़ी टोकरी, बांस के बने 3 सूप या पीतल की परात, थाली, दूध, ग्लास
  • चावल, लाल सिन्दूर, दीपक, नारियल, हल्दी, सुथनी, गन्ना, शकरकंदी, सब्जी
  • शहद, बड़ा नींबू, नाशपाती, पान, साबुत सुपारी, कैराव, चंदन, कपूर और मिठाई
  • प्रसाद के रूप में ठेकुआ, मालपुआ, खीर-पूड़ी, सूजी का हलवा, चावल के बने लड्डू अपने साथ लें।

सूर्य देव को अर्ध्य देने की विधि – बांस की टोकरी में ऊपर लिखी हुई सभी सामग्री रखें। सूर्य को अर्ध्य देते समय सारा प्रसाद सूप में रखे और सूप में ही दीपक जलाएं उसके बाद नदी या पानी में उतरकर सच्चे मन से सूर्य देव को अर्ध्य दें। 

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देवी षष्ठी कौन हैं और इसकी उत्पत्ति कैसे हुई

छठ देवी को सूर्य की बहन बताया गया हैं। छठ व्रत के अनुसार छठ देवी ईश्वर की देवी पुत्री देवसेना बताई गई हैं। देवसेना अपना परिचय देते हुए कहती हैं, की वह प्रकृति के छठवें अंश से उत्पन्न हुई हैं, यही कारण है कि मुझे षष्ठी कहा जाता हैं। छठ देवी का कहना हैं कि यदि आप पुत्र संतान प्राप्ति की कामना कर रहे हैं, पुत्र की प्राप्ति में कोई दिक्कते आ रही हैं, तो आप सच्चे मन से मेरी विधिवत पूजा करें। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को करने से मनोकामना पूर्ण होती हैं।  

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार रामायण काल में भगवान श्री राम के अयोध्या आने के पश्चात माता सीता के साथ मिलकर कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्य भगवान की उपासना करने से भी इस व्रत को जोड़ा जाता हैं। महाभारत काल में कुंती द्वारा विवाह से पूर्व सूर्य की उपासना से पुत्र की प्राप्ति से भी इसे जोड़ा जाता है।

 सूर्यदेव के अनुष्ठान से उत्पन्न कर्ण जिन्हें अविवाहित देवी कुंती ने जन्म देने के बाद नदी में प्रवाहित कर दिया था, वह भी सूर्य देव के उपासक थे। कर्ण घंटों जल में रहकर सूर्य देव की पूजा करते थे। मान्यता हैं कि कर्ण पर सूर्य की असीम कृपा हमेशा बनी रही, इसी कारण लोग सूर्य देव की कृपा दृष्टी और संतान सुख के लिए कार्तिक मास की षष्ठी को सूर्य भगवान की उपासना करते हैं और खासकर महिलायें संतान की रक्षा हेतु ही इस दिन व्रत करती हैं और छठी मैया या षष्ठी माता से संतान सुख तथा संतान की रक्षा और उन्हें दीर्घायु प्रदान करने का आशीर्वाद मांगती हैं।

छठ पूजा चार दिनों तक मनाया जाने वाला त्यौहार है, जिसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होती है और कार्तिक शुक्ल सप्तमी को इस पर्व का समापन किया जाता है।

पहला दिन- नहाय खाय (18 नवंबर)

छठ पूजा का पहला दिन नहाय खाय के रूप में मनाया जाता है। इस दिन घर की साफ-सफाई की जाती है तथा मन और आत्मा को शुद्ध रखते हुए तामसिक भोजन का त्याग किया जाता है और सात्विक एवं शाकाहारी भोजन ग्रहण किया जाता है।

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दूसरा दिन- खरना- (19 नवंबर)

छठ पूजा का दूसरा दिन खरना के नाम से जाना जाता है खरना का मतलब पूरे दिन के उपवास से है, इस दिन व्रत रखने वाला व्यक्ति पानी की एक बूँद तक ग्रहण नहीं करता और निर्जल व्रत करता है। शाम को गुड की खीर, घी लगी हुई रोटी और फल ग्रहण किये जाते है साथ ही घर के बाकी सदस्यों को इसे प्रसाद के तौर पर परोसा जाता है।

तीसरा दिन- संध्या अर्ध्य (20 नवंबर)

कार्तिक शुक्ल षष्ठी को संध्या के समय सूर्य देव को अर्ध्य दिया जाता है यह छठ पूजा का तीसरा दिन होता है। संध्या के समय बांस की टोकरी में फलों, ठेकुवा, चावल के लड्डू आदि से अर्ध्य का सूप सजाया जाता जाता है और प्रसाद भरे सूप से छठी मैया की पूजा की जाती है। सूर्य देव की पूजा कर रात्रि में छठी माता के गीत गाए जाते है और व्रत कथा सुनी जाती है।  

चौथा दिन- उषा अर्ध्य (21 नवंबर)

इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले नदी के घाट पर पहुंचकर उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। छठ पर्व के अंतिम दिन सुबह के समय सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। संतान की रक्षा और स्वस्थ्य और लम्बी आयु की कामना करते हुए परिवार की सुख-शनि का वर माता छठी से माँगा जाता है। पूजा के बाद व्रती कच्चे दूध का शरबत पीकर और थोडा प्रसाद खाकर व्रत पूरा करती है, जिसे पारण या परना कहा जाता है। 

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