उत्पन्ना एकादशी व्रत
11 दिसंबर 2020, शुक्रवार
सुबह पूजा का मुहूर्त –
सुबह- 5:15 से सुबह 06:05 तक (11 दिसंबर)
संध्या पूजा का मुहूर्त – सायं 05:43 से 07:03 तक (11 दिसंबर)
एकादशी व्रत पारणा मुहूर्त- सायं 07:04:38 से 09:08:48 तक, (12 दिसंबर)
हिन्दू पंचाग के अनुसार प्रत्येक महीने की ग्यारस अर्थात ग्यारहवी तिथि एकादशी कहलाती है। हिन्दू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व है। हिन्दू धर्म में एकादशी के दिन व्रत करना बहुत ही शुभ फलदायी माना जाता है। वैसे तो पूर्ण वर्षभर में कुल 24 एकादशियाँ होती है इस वर्ष के अंतिम माह में 11 दिसंबर 2020 को उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखा जाएगा, इस दिन एकादशी माता का जन्म हुआ था इसलिए इसे उत्पन्ना एकादशी कहा जाता हैं। के पूर्वजन्म और वर्तमान दोनों जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। मान्यता है कि देवी एकादशी भगवान विष्णु की एक शक्ति का रूप है उन्होंने इस दिन उत्पन्न होकर राक्षस मुर का वध किया था। इसलिए इस एकादशी को उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। मनुष्य के पूर्वजन्म और वर्तमान दोनों जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।
उत्पन्ना एकादशी व्रत पूजा विधि
एकादशी के व्रत में भगवान विष्णुजी की पूजा-अर्चना की जाती है। एकादशी के दिन साधक को प्रातः जल्दी उठकर स्नानादि के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए। संकल्प लेने के पश्चात भगवान विष्णु, कृष्ण भगवान तथा बलराम जी की धूप,अगरबत्ती, पुष्प, फूल , तिल आदि से पूजा करनी चाहिए। इस दिन बिना जल पिए निर्जल व्रत करना चाहिए परन्तु संभव न हो सके तो पानी तथा एक समय फलाहार ले सकते है। द्वादशी के दिन यानि पारण के दिन भगवान की पुन्हा पूजा अर्चना करें उसके बाद कथा पढ़ें। कथा पढ़ने के बाद प्रसाद बांटे और योग्य ब्राह्मण को दान-दक्षिणा देकर विदा करें। अंत में भोजन ग्रहण कर व्रत खोलना चाहिए।
उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं एकादशी माता के जन्म और इस व्रत की कथा युधिष्ठिर को सुनाई थी। कहते हैं सतयुग में एक महा भयंकर राक्षा था जिसका नाम मुर था वो अति बलशाली था। मुर राक्षस ने अपने पराक्रम से स्वर्ग को जीत लिया था। उसके इस पराक्रम के आगे देवों के देव इंद्र देव, वायु देव आनु अग्नि देव टिक नहीं पाए थे इसलिए उन सभी को जीवन यापन के लिए मृत्युलोक जाना पड़ा। निराश और हताश होकर इंद्र देव जब कैलाश पर्वत पर गए और भगवान् भोले के समक्ष अपना दुःख बतलाने लगे तब इंद्र देव की प्रार्थना सुनकर भगवान शिव उन्हें भगवान विष्णु के पास जाने के लिए कहते हैं। इसके बाद सभी देवगण क्षीरसागर पहुंचते हैं, वहां सभी देवता भगवान विष्णु से राक्षस मुर से अपनी रक्षा की प्रार्थना करते हैं। भगवान विष्णु सभी देवताओं को आश्वासन देते हैं। इसके बाद सभी देवता राक्षस मुर से युद्ध करने उसकी नगरी जाते हैं। कई सालों तक भगवान विष्णु और राक्षस मुर में युद्ध चलता है। युद्ध के समय भगवान विष्णु को नींद आने लगती है और वो विश्राम करने के लिए एक गुफा में सो जाते हैं। भगवान विष्णु को सोता देख राक्षस मुर उन पर आक्रमण कर देता है लेकिन इसी दौरान भगवान विष्णु के शरीर से कन्या उत्पन्न होती है। इसके बाद मुर और उस कन्या में युद्ध चलता है। इस युद्ध में मुर घायल होकर बेहोश हो जाता है और देवी एकादशी उसका सिर धड़ से अलग कर देती हैं। इसके बाद भगवान विष्णु की नींद खुलने पर उन्हें पता चलता है कि किस तरह से उस कन्या ने भगवान विष्णु की रक्षा की है। इसपर भगवान विष्णु उसे वरदान देते हैं कि तुम्हारी पूजा करने वाले के पूर्वजन्म और वर्तमान दोनों जन्मों के पाप नष्ट हो जाएंगे और उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी |