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सौभाग्य प्राप्ति के लिए करें वरूथिनी एकादशी व्रत, जानिए इसका महत्त्व तिथि और पूजा-विधि

वरूथिनी एकादशी 7 मई 2021 शुक्रवार को मनाई जाएगी

वरूथिनी एकादशी का पारण मुहूर्त- 05:35:17 से 08:16:17 (8 मई को )

कुल समय- 2 घंटे और 41 मिनट

वरुथिनी एकादशी व्रत के प्रभाव से समस्त पाप, ताप व दु:ख दूर होते हैं और अनंत शक्ति मिलती है। वरुथिनी एकादशी का व्रत सुख और सौभाग्य का प्रतीक है। इस व्रत में भक्तिभाव से भगवान नारायण की पूजा करनी चाहिए। सूर्य ग्रहण के समय जो फल स्वर्ण दान करने से प्राप्त होता है, वही फल वरूथिनी एकादशी का उपवास करने से मिलता है। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य लोक और परलोक दोनों में सुख भोगता है।

वरुथिनी एकादशी व्रत का महत्व

भारत देश में रहनेवाले लोगों में एक आस्था हैं कि वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से कष्टों से मुक्ति मिलती हैं और दरिद्रता और गरीबी दूर होती हैं। यह व्रत करना बहुत पुण्यदायी होता है। कहा जाता हैं कि इस व्रत को रखने से कन्यादान और सालों तक तप के बराबर पुण्य मिलता हैं। इस दिन के पुण्य प्रभाव से घर-परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती हैं। धार्मिक मान्यता है कि ब्राह्मण को दान देने, करोड़ो वर्ष तक ध्यान करने और कन्यादान करने से मिलने वाले फल से भी बढ़कर है वरुथिनी एकादशी का व्रत। इस व्रत को करने से भगवान नारायण की कृपा होती है। मनुष्य के जीवन में आनेवाले दु:ख दूर होते हैं और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है।

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पौराणिक कथा

एक समय अर्जुन के आग्रह करने पर भगवान श्री कृष्ण ने वरुथिनी एकादशी की कथा और उसके महत्व का वर्णन किया, जो इस प्रकार है:

प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नामक राजा का राज्य था। वह अत्यन्त दानशील और तपस्वी राजा था। एक समय जब वह जंगल में तपस्या कर रहा था। उसी समय जंगली भालू आकर उसका पैर चबाने लगा। इसके बाद भालू राजा को घसीट कर वन में ले गया। तब राजा घबराया, तपस्या धर्म का पालन करते हुए उसने क्रोध न करके भगवान विष्णु से प्रार्थना की।

राजा की पुकार सुनकर भगवान विष्णु वहां प्रकट हुए़ और चक्र से भालू का वध कर दिया। तब तक भालू राजा का एक पैर खा चुका था। इससे राजा मान्धाता बहुत दु:खी थे। भगवान श्री विष्णु ने राजा की पीड़ा को देखकर कहा कि- ‘’मथुरा जाकर तुम मेरी वाराह अवतार मूर्ति की पूजा और वरूथिनी एकादशी का व्रत करो, इसके प्रभाव से भालू ने तुम्हारा जो अंग काटा है, वह अंग ठीक हो जायेगा। तुम्हारा यह पैर पूर्वजन्म के अपराध के कारण हुआ है।’’ भगवान विष्णु की आज्ञा अनुसार राजा ने इस व्रत को पूरी श्रद्धा के साथ किया और वह फिर से सुन्दर अंग वाला हो गया।

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वरुथिनी एकादशी व्रत की पूजा विधि

  • वरुथिनी एकादशी का व्रत रखने वाले व्यक्ति को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान वैगरह से निवृत्त होकर सबसे पहले उपवास का संकल्प लेना चाहिए।
  • एक छोटी मेज या चौकी पर सप्तधान्य रखकर मिटटी का कलश स्थापित करें और भगवान् नारायण की मूर्ति या तस्वीर पर गंगाजल से स्नान करवाकर गंध, सफ़ेद पुष्प, धूप-दीप दिखाकर उनकी आरती करें।
  • भगवान् नारायण को तुलसी बहुत प्रिय हैं, इसलिए उन्हें तुलसीदल भी समर्पित करना चाहिए।
  • इस दिन दान का विशेष महत्त्व होता हैं, इस दिन जरुरतमंदो को दान जरुर करना चाहिए।
  • व्रत से एक दिन पूर्व यानि दशमी को एक ही बार भोजन करना चाहिए। व्रत की अवधि में तेल से बना भोजन, दूसरे का अन्न, शहद, चना, मसूर की दाल, कांसे के बर्तन में भोजन नहीं करना चाहिए।
  • व्रती को सिर्फ एक ही बार भोजन करना चाहिए। रात्रि में भगवान का स्मरण करते हुए जागरण करें और अगले दिन द्वादशी को व्रत का पारण करना चाहिए।
  • व्रत वाले दिन शास्त्र चिंतन और भजन-कीर्तन करना चाहिए और झूठ बोलने व क्रोध करने से बचना चाहिए।

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