षटतिला एकादशी 2020 : व्रत कथा, महत्व और विधि

20 जनवरी 2020 सोमवार के दिन षटतिला एकादशी का व्रत रखा जायेगा, प्रत्येक वर्ष माघ महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी का व्रत रखा जाता है। षटतिला नाम से ही यह प्रतीत होता है की इस व्रत का सम्बन्ध तिल से है। ठंड के मौसम में तिल का अपना महत्व है, वैसे भी हिन्दू धर्म में तिल को बहुत ही पवित्र माना जाता है और पूजा-अर्चना में इसका अधिक महत्व है।

षटतिला एकादशी के दिन तिलों का उपयोग छ: प्रकार से करने का विधान है, इस दिन तिल से स्नान करना, तिल का उबटन लगाना, तिल से हवन-पूजा करना, तिल से ही तर्पण करना, भोजन में तिल का प्रयोग करना और तिलों का दान करना आदि का समावेश होता है, इसलिए इस व्रत को षटतिला एकादशी व्रत के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है की इस दिन जो भी जातक जितना अधिक तिलों का दान करता है, उसको उतने ही वर्षों तक स्वर्गलोक में रहने का सौभाग्य प्राप्त होता है, इस दिन ब्रह्मणों को तिल से भरा घड़ा दान करना श्रेष्ठ माना गया है।  

षटतिला एकादशी व्रत की कथा

पौराणिक काल में एक बार दालभ्य ऋषि ने पुलत्स्य ऋषि से पूछा कि हे ऋषिवर पृथ्वी लोक में मनुष्य ब्रह्महत्या जैसे महान पाप करते हैं, पराया धन चुराते है तथा दूसरों की प्रगति या उन्नत्ति से जलते है। अनेक प्रकार के नशे में फंसकर अपना ही जीवन तथा समस्त परिवार का जीवन बर्बाद करते है फिर भी इनको नर्क प्राप्त नहीं होता, इसका कारण क्या है? उनके द्वारा ऐसा कौनसा दान-पुण्य किया जाता है, जिसके फलस्वरूप उनके पाप धूल जाते है? तब पुलत्स्य ऋषि कहने लगे हे वत्स्य आपने मुझसे बहुत ही गंभीर प्रश्न पूछा है, इसका उत्तर देने के बाद संसार के जीवों का अत्यंत भला होगा। इस भेद को ब्रह्मा, विष्णु, शिव, इंद्र देव भी नहीं जानते परन्तु मै आपको इसके पीछे की गुप्त कहानी जरुर बताऊंगा।  

पुलत्स्य ऋषि ने दालभ्य ऋषि से कहा कि माघ मास लगते ही मनुष्य को स्नान आदि करके शुद्ध रहना चाहिए। इन्द्रियों को अपने वश में कर काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्षा, द्वेष आदि का त्याग कर भगवान का स्मरण करना चाहिए।

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षटतिला एकादशी व्रत का महत्व तथा विधि

माघ माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी का व्रत रखना चाहिए, इससे मनुष्य को सभी पापों से मुक्ति मिलती है तथा उसे स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है। जो श्रद्धालू श्रद्धा भाव से षटतिला एकादशी का व्रत रखते है, वे श्रद्धा भाव से पुष्य नक्षत्र में तिल तथा कपास को गोबर में मिलाकर उसके 108 कंडे बनाकर रख लें। माघ मास की षटतिला एकादशी के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ़-सुधरे वस्त्र धारण करें, व्रत करने का संकल्प करके भगवान विष्णु जी का ध्यान करना चाहिए। यदि व्रत करते हुए किसी भी प्रकार की भूल-चूक हो जाएँ तो उसके लिए भगवान से माफ़ी मंगनी चाहिए।

रात्रि के समय गोबर के कंडों से हवन करना चाहिए। रातभर जागरण करके भगवान का भजन-कीर्तन करना चाहिए। अगले दिन भगवान का भजन-कीर्तन समाप्त होने के बाद खिचडी का भोग लगाना चाहिए और भगवान की शरण में प्रार्थना करें की हे ईश्वर आप दीनों को शरण देने वाले है, संसार के सागर में फंसे लोगों का उद्धार करने वाले है, आपकी दयादृष्टि हम पर सदा बनी रहे। इसके बाद किसी योग्य ब्राह्मण की पूजा कर उन्हें तिल से भरा घडा, छाता, जूते, चप्पल, वस्त्र और अपनी हैसियत के अनुसार रुपए देने चाहिए।

षटतिला एकादशी के दिन तिल के साथ अन्नादि का भी दान करना चाहिए, इससे मनुष्य का जीवन सुखद और वैभवशाली होता है, जीवन में कष्ट और दरिद्रता दूर हो जाती है। विधिपूर्वक इस व्रत को करने से मनुष्य को स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है।

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