पितृपक्ष (श्राद्ध पक्ष) हिन्दू धर्म में वह काल है जब हम अपने पूर्वजों (पितरों) को याद करते हैं और उनका तर्पण, श्राद्ध एवं पिंडदान करके उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। यह काल हर साल भाद्रपद पूर्णिमा के बाद से लेकर आश्विन अमावस्या तक चलता है। कुल 16 दिन होते हैं जिन्हें सोळह श्राद्ध कहा जाता है। हर दिन का अलग महत्व और अलग प्रकार के श्राद्ध निर्धारित हैं।
1. प्रतिपदा श्राद्ध
इस दिन उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु अचानक या असमय हो गई हो। अकाल मृत्यु पाए हुए पितरों की आत्मा की शांति के लिए प्रतिपदा तिथि का विशेष महत्व है।
2. द्वितीया श्राद्ध
इस दिन उन महिलाओं का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु उनके पति से पहले हुई हो। साथ ही जिनका विवाह हुआ हो लेकिन संतान न हो पाई हो, उनका श्राद्ध भी द्वितीया तिथि को किया जाता है।
3. तृतीया श्राद्ध
इस तिथि पर उन स्त्रियों का श्राद्ध किया जाता है जो सती हुई हों, अर्थात जिन्होंने अपने पति के साथ ही देह त्याग दिया हो। इसके अलावा बाल्यावस्था में जिनकी मृत्यु हो गई हो, उनका भी श्राद्ध तृतीया को किया जाता है।
4. चतुर्थी श्राद्ध
चतुर्थी तिथि पर उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु दुर्घटना या अकाल मृत्यु के कारण हुई हो। यह दिन विशेष रूप से अप्राकृतिक मृत्यु वाले पितरों के लिए महत्वपूर्ण है।
5. पंचमी श्राद्ध
पंचमी पर कुमारी कन्याओं और छोटे ब्राह्मण बालकों का श्राद्ध किया जाता है। माना जाता है कि इनके लिए श्राद्ध करने से घर में पवित्रता और सुख-समृद्धि आती है।
6. षष्ठी श्राद्ध
षष्ठी तिथि पर माता और मातृकाओं का श्राद्ध किया जाता है। यह दिन विशेष रूप से मातृपक्ष के लिए है।
7. सप्तमी श्राद्ध
सप्तमी पर गर्भपात से मृत शिशुओं एवं असमय मृत्यु पाए लोगों का श्राद्ध किया जाता है। इससे उनकी आत्मा को शांति मिलती है।
8. अष्टमी श्राद्ध
अष्टमी तिथि पर अल्पायु में मरे हुए बालकों और कुमारियों का श्राद्ध किया जाता है।
9. नवमी श्राद्ध (आवला नवमी)
नवमी का दिन विशेष रूप से माता के श्राद्ध के लिए श्रेष्ठ माना गया है। जिनकी माता का निधन हो चुका है, वे इस दिन विशेष रूप से तर्पण और श्राद्ध करते हैं।
10. दशमी श्राद्ध
दशमी तिथि पर उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है जो पुरुष थे और जिन्होंने अपने जीवन में धार्मिक कार्य किए थे। यह दिन धार्मिक प्रवृत्ति वाले पितरों के लिए है।
11. एकादशी श्राद्ध
एकादशी तिथि पर उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है जिन्होंने जीवन में सन्यास धारण किया था।
12. द्वादशी श्राद्ध
द्वादशी को उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है जिनका निधन किसी दूर देश या स्थान पर हुआ हो और जिनके अंतिम संस्कार पूरे रीति-रिवाज से न हो पाए हों।
13. त्रयोदशी श्राद्ध
इस दिन उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु असमय या असामान्य परिस्थितियों में हुई हो, जैसे युद्ध, दुर्घटना, आत्महत्या आदि।
14. चतुर्दशी श्राद्ध (घात चतुर्दशी)
यह दिन हिंसा, युद्ध या दुर्घटना में मारे गए लोगों के लिए विशेष है। इसे घात चतुर्दशी भी कहा जाता है।
15. सर्वपितृ अमावस्या (महालय अमावस्या)
यह पितृपक्ष का सबसे महत्वपूर्ण दिन है। यदि किसी को अपने पितरों की मृत्यु तिथि ज्ञात न हो तो इस दिन सभी पितरों का श्राद्ध किया जाता है। इसे सर्वपितृ अमावस्या या महालय अमावस्या कहा जाता है।
16. वृद्धि श्राद्ध
यदि किसी कारणवश नियत तिथि पर श्राद्ध न हो पाए तो पितृपक्ष के किसी भी दिन वृद्धि श्राद्ध किया जा सकता है। इसे पूरक श्राद्ध भी कहा जाता है।
पितृपक्ष का महत्व
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इन दिनों में श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान से पितृदेव प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद देते हैं।
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ऐसा माना जाता है कि पितरों को संतुष्ट करने से घर में सुख-शांति, समृद्धि और संतति का आशीर्वाद मिलता है।
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पितृपक्ष में की गई पूजा और दान का फल कई गुना बढ़कर मिलता है।
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