जानिए, ज्योतिषीय में पंच पक्षी का महत्व

  ज्‍योतिष शास्‍त्र के अनुसार पंच पक्षी पद्धति भी भविष्‍ययफल में काफी प्रचलित है। ज्योतिष सिद्धान्त के अंतर्गत समय को पांच भागों में बांटकर प्रत्येक भाग का नाम एक विशेष पक्षी पर रखा गया है। इस सिद्धांत के अनुसार जब कोई कार्य किया जाता है तो उस समय जिस पक्षी की स्थिति होती है उसी के अनुरूप उसका फल मिलता है। पंच पक्षी के अंतर्गत पांच पक्षी गिद्ध, उल्लू, कौआ, मुर्गा और मोर है। पंच पक्षी पद्धति के अनुसार जब आपके शुभ पक्षी का समय चल रहा हो तो आपको अपने सरल प्रयासों से भी सफलता हासिल होती है।

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इस पद्धति के अंतर्गत पूरे दिन के 12 घंटों को पांच बराबर भागों में बांटा जाता है। प्रत्येक भाग 2 घंटे 24 मिनट का होता है। पांचों पक्षियों का समय पूरे दिन में बारी -बारी से आता है। व्यक्ति के जन्म नक्षत्र व चन्द्र के शुक्ल पक्ष या कृ्ष्ण पक्ष की स्थिति के अनुसार उसका जन्‍म पक्षी ज्ञात किया जाता है।

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दिन में पंच पक्षी के कृत्य रविवार एवं मंगलवार सर्वप्रथम यम की अवधि सुबह 6 बजे से 8:24 तक गिद्ध – खाना, उल्लू – घूमना, कौआ – शासन करना, मुर्गा – सोना, मयूर – मरना, रविवार एवं मंगलवार को सुबह 6 से 8:24  तक पांचों पक्षी उपर्युक्त गतिविधियों में संलिप्त रहते हैं।

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यदि जन्म पक्षी कौआ वाला जातक कोई महत्वपूर्ण कार्य संपादित करता है तो उसके कार्य के शत-प्रतिशित सफल होने की पूर्ण संभावना होती है।

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जन्मपक्षी गिद्ध है तो उसके कार्य में दिक्‍कतें आएंगीं और कार्य विलंब से संपन्‍न होगा।

जन्मपक्षी उल्लू वाले जातक को कठिन परिश्रम करने पर भी कम फल मिलेगा।

मुर्गा एवं मयूर जन्मपक्षी वाले जातक तो अपना प्रयास निरर्थक ही समझें क्योंकि इस अवधि में इनके कार्य सफल होने की संभावना नगण्य है क्योंकि इनके जन्मपक्षी इस समय क्रमशः सोने एवं मरने की गतिविधि संपादित कर रहे हैं।

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