मीराबाई से प्रेम की खातिर स्‍वयं धरती पर आए थे श्रीकृष्‍ण – मीराबाई की मृत्‍यु आज भी है रहस्‍य

वैसे तो संसार में श्रीकृष्‍ण के कई भक्‍त हैं लेकिन उनमें मीराबाई सबसे अलग और ऊपर आती हैं। किवंदती है कि कृष्‍ण प्रेम में मीराबाई ने अपना सब कुछ छोड़ दिया था और स्‍वयं को कृष्‍ण भक्‍ति में लीन कर दिया था।

श्रीकृष्‍ण की परम भक्‍त थी मीरा जिन्‍होंनें अपना पूरा जीवन कृष्‍ण भक्‍ति में विलीन कर दिया था। श्रीकृष्‍ण की परम भक्‍त मीराबाई की मृत्‍यु आज भी एक रहस्‍य है। पुराणों में भी मीराबाई की मृत्‍यु का कोई प्रमाण नहीं मिलता।

विद्वानों के भी इस विषय में अलग-अलग मत हैं। लूनवा के भूरदान ने मीरा की मौत 1546 में बताई। वहीं डॉ. शेखावत के अनुसार मीरा की मृत्यु 1548 में हुई। आइए जानते हैं मीराबाई के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें -:

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  • राजस्‍थान के मेड़ता में 1498 ई. में जन्‍मी मीराबाई के पिता मेड़ता के राजा थे। किवदंती है कि मीराबाई को छोटी उम्र में उनकी मां ने यूं ही कह दिया था कि श्रीकृष्‍ण तेरे दूल्‍हा हैं। बस फिर क्‍या था मीरा ने अपना पूरा जीवन इसी बात को सच मानकर गुज़ार दिया।
  • उम्र के बढ़ने के साथ-साथ मीरा का कृष्‍ण के प्रति प्रेम भी बढ़ता गया। मीराबाई अपने पति के रूप में श्रीकृष्‍ण को लेकर अनेक कल्‍पनाएं बुनती थीं।

  • सन् 1516 में मीराबाई का विवाह राणा सांगा के पुत्र और मेवाड़ के राजकुमार भोजराज के साथ संपन्‍न हुआ था। एक युद्ध में सन् 1521 में मीराबाई के पति का देहांत हो गया था।

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  • पति की मृत्‍युशैय्या पर मीरा ने सती होना स्‍वीकार नहीं किया और धीरे-धीरे संसार से विरक्‍त होती चलीं गईं। मीराबाई साधु-संतुओं के साथ भजन-कीर्तन में अपना समय व्‍यतीत करती थीं।
  • मीरा के ससुराल पक्ष ने उनकी अपार कृष्‍ण भक्‍ति को राजघराने के प्रतिकूल मानकर उन पर अत्‍याचार करने लगे। इसके बाद मीरा ने अपने सुसराल को छोड़ दिया और कृष्‍ण भक्‍ति करते हुए द्वारका पहुंच गईं।
  • मान्‍यता है कि इसी स्‍थान पर कृष्‍ण भक्‍ति में लीन होते हुए वह कान्‍हा की मूर्ति में समा गईं।

मान्‍यता है कि अपनी प्रिय और परम भक्‍त को लेने के लिए स्‍वयं भगवान कृष्‍ण आए थे। मीराबाई की मृत्‍यु नहीं हुई थी बल्कि वो भगवान कृष्‍ण की मूर्ति में समा गई थीं। अब किसी भक्‍त के लिए इससे अच्‍छी मृत्‍यु और क्‍या हो सकती है।

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मीरा के अलावा श्रीकृष्‍ण के जीवन की बात करें तो रुक्मिणी के साथ-साथ उनकी 16 हज़ार रानियां थीं। श्रीकृष्‍ण ने रुक्‍मिणी से प्रेम विवाह किया था किंतु उनका प्रथम प्रेम को राधा ही थीं। शायद इसी वजह से आज भी भगवान कृष्‍ण के साथ उनकी पत्‍नी रुक्‍मिणी की नहीं बल्कि राधा जी की पूजा होती है।

श्रीकृष्‍ण का राधा से विवाह तो नहीं हुआ था किंतु फिर भी दोनों के प्रेम को अमर और पवित्र माना जाता है। वहीं मीराबाई की बात करें तो उसने अपना सारा जीवन की कृष्‍ण भक्‍ति को समर्पित कर दिया था। मीराबाई ने विवाह तो किया था लेकिन कभी उसका निर्वाह नहीं किया। विवाह के पश्‍चात् भी मीरा कृष्‍ण की भक्‍ति में लीन रहती थी। अपने अंतिम समय में भी उसे कृष्‍ण प्रेम ने ही मोक्ष दिलवाया था।

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