मकर संक्रांति 2020 : पर्व, महत्त्व तिथि और शुभ मुहूर्त

15 जनवरी 2020, बुधवार

संक्रांति काल- 07बजकर 19 मिनिट (15 जनवरी)

पुण्यकाल- 07बजकर 19 मिनिट से 12 बजकर 17 मिनिट तक

महापुण्य काल- 07बजकर 19 मिनिट से 09बजकर 03 मिनिट तक

स्नान का शुभ समय – प्रातकाल: का समय

मकर संक्रांति का पर्व पूरे भारतवर्ष में हिन्दुओं द्वारा मनाया जाने वाला बहुत ही पवित्र पर्व है। इसे पूरे देश में विभिन्न क्षेत्रों में स्थानीय मान्यताओं के अनुसार मनाया जाता है। हर वर्ष मकर संक्रांति 14 या 15 जनवरी को मनाई जाती है, इस दिन सूर्य उत्तरायण होता है, जबकि उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर मुड जाता है, वैदिक ज्योतिष के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है, सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने को संक्रांति कहा जाता है। इस दिन गंगा स्नान कर व्रत, कथा, दान-धर्म और भगवान सूर्यदेव की उपासना करने का विशेष महत्व है।

मकर संक्रांति का महत्व

भारत में धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से देखा जाएँ तो मकर संक्रांति का बहुत बड़ा महत्व है। मकर संक्रांति में मकर शब्द मकर राशि को दर्शाता है जबकि संक्रांति का अर्थ संक्रमण अर्थात प्रवेश करना है, इसी के आधारपर सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते है, इसलिए इस समय को मकर संक्रांति कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि के घर जाते है। शनि मकर और धनु राशि के स्वामी है, इसलिए भी यह पर्व पिता-पुत्र के अनोखे मिलन से भी जुड़ा हुआ है।  

मकर संक्रांति के बारे में पौराणिक कथाएं

पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनिदेव से मिलने उनके लोक जाते है। यह भी माना जाता है की मकर संक्रांति के दिन भागीरथी के पीछे पीछे माँ गंगा मुनि कपिल के आश्रम से होकर सागर में मिली थीं। अन्य कथा के अनुसार माँ गंगा को धरती पर लाने वाले भागीरथ ने अपने पूर्वजों का इस दिन तर्पण किया था। मान्यता यह भी है की तीरों की शैया पर लेटे हुए पितामहः भीष्म ने प्राण त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन का ही चयन किया था, ऐसी मान्यता है की इस दिन देहत्याग करनेवाले व्यक्ति को जन्म-मरण के चक्र से पूर्णता मुक्ति मिल जाती है।

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एक अन्य कथा के अनुसार असुरों पर भगवान विष्णु की विजय के तौर पर भी मकर संक्रांति मनाई जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार मकर संक्रांति के दिन ही भगवान विष्णु ने पृथ्वी लोक पर असुरों का संहार कर उनके सिरों को काटकर मंडरा पर्वत पर गाड़ दिया था, तभी से भगवान विष्णु की इस जीत को मकर संक्रांति के पर्व के रूप में मनाया जाता है।   

मकर संक्रांति में गुड और तिल का महत्त्व

मकर संक्रांति के दिन गुड और तिल से बने पदार्थ खाने की प्रथा है क्योंकि शीत ऋतु यानि ठण्ड के वातावरण का तापमान बहुत कम होने के कारण शरीर में रोग और बीमारियाँ जल्दी व्यक्ति को घेर लेती है, तिल और गुड के सेवन से ठंड के मौसम में शरीर को गर्मी मिलती है इसलिए मकर संक्रांति के दिन गुड और तिल से बने पकवान बनाए जाते है और बांटे जाते है। गुड और तिल में गर्मी पैदा करनेवाले तत्वों के साथ ही शरीर के लिए लाभदायक स्वास्थ्यवर्धक पोषक पदार्थ मौजूद होते है। अतः भारत के कई राज्यों में इस दिन खिचडी का भोग लगाया जाता है और तिल-गुड, रेवड़ी, गजक आदि का प्रसाद बांटा जाता है। ऐसी मान्यता है की मकर संक्रांति के दिन मीठे व्यंजनों को खाने और दूसरों को खिलाने से रिश्तों में आई कड़वाहट दूर हो जाती है।          

मेलों का आकर्षण तथा स्नान का महत्व  

मकर संक्रांति के मौके पर देश के विभिन्न राज्यों में मेले लगते है। इस दिन को ख़ास बनाने के लिए दूर-दराज से लोग आते है। खासकर उत्तर-प्रदेश, मध्य-प्रदेश और दक्षिण भारत में बड़े मेले लगाए जाते है। इस पवित्र दिन लाखों श्रद्धालु गंगा और अन्य पवित्र नदियों के तट पर स्नान और दान-धर्म करते है। पौराणिक मन्य्थाओं के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि जो मनुष्य मकर संक्रांति पर अपना देह त्याग करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है और वह जीवन-मरण के चक्कर से मुक्त हो जाता है।

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