चंद्र ग्रह मन का प्रतिनिधित्व करता है। चन्द्र माता, मन, मस्तिष्क, बुद्धिमता, स्वभाव, जननेन्द्रियों, प्रजनन सम्बन्धी रोगों, गर्भाशय का कारक है। अत: सुखी जीवन के लिए चंद्रमा का मजबूत होना बेहद जरूरी है। आपकी कुंडली में चंद्रमा किस स्थान पर है अथवा उसका आपके ऊपर क्या प्रभाव पड़ेगा यह आप स्वयं भी जान सकते हैं। निम्न तथ्यों का अध्ययन कर आप स्वयं अपनी कुंडली में चंद्रमा के प्रभाव को जान सकते हैं।
जन्मतिथि से जानें
कृष्णपक्ष की त्रयोदशी और चतुदर्शी के समय जन्मे जातकों की कुंडली में चंद्रमा वृद्धावस्था में होता है वहीं दूसरी ओर अमावस्या के दिन जन्म होने पर चंद्रमा मरण अवस्था में माना जाता है। यदि आपका जन्म शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को हुआ है तो आपकी कुंडली में चंद्रमा बालावस्था में होगा जिसके अनुसार आपकी कुंडली में चंद्रमा की स्थिति कमजोर है और इस कारण से आपको इसके नकारात्मक प्रभाव मिलेंगें।
शुक्लपक्ष की एकादशी से कृष्णपक्ष की पंचमी तक जन्म लेने वाले जातकों की कुंडली में चंद्रमा काफी मजबूत स्थिति में होता है। इन जातकों को चंद्रमा के प्रभाव में सकारात्मक फल प्राप्त होते हैं। चंद्रमा की शुभ स्थिति के कारण ये लोग इससे जुड़े भाव में सफलता हासिल करते हैं। कृष्णपक्ष की षष्ठी से कृष्णपक्ष की द्वदशी के बीच जन्मे जातकों का चंद्रमा मध्यम स्थिति में होता है। इन लोगों पर चंद्रमा का सामान्य प्रभाव रहता है।
जन्मकुंडली में 2, 4, 5, 8, 9 एंव 12 वें भाव में चंद्रमा के विराजमान होने का अर्थ है कि आपकी कुंडली में चंद्रमा कमजोर है अथवा यह आप पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा। वहीं दूसरी ओर यदि चंद्रमा 1, 3, 6, 7, 10 एंव 11 वें भाव में बैठा है तो यह आपको सकारात्मक फल देगा। यह चंद्रमा की शुभ स्थिति है। चंद्रमा की इस स्थिति में आपको उसकी सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होगी। जन्मकुंडली में चंद्रमा के शुभ स्थिति में होने के कारण जातक को कई प्रकार के सुखों का आनंद उठाने का मौका मिलता है।
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इस नाम के लोग सारी जिंदगि परेसानि ही उठते है क्या