गुरु चांडाल योग अत्यधिक विषैला व अशुभ दोष कारक योग हैं। यह विषाक्त योग भी कहलाता हैं। गुरु चांडालदोष गुरु व राहु के मिश्रित फल का परिणाम हैं। जन्म कुंडली में गुरु व राहु का एक साथ स्थित होना गुरु चांडाल दोष उत्पन्न करता है। कई विद्वान गुरु-राहु के एक दूसरे से 30 अंश के मध्य में स्थित होने पर बनी स्थिति को गुरु चांडालदोष कहते हैं।
गुरु चांडाल के कारण होती हैं यें परेशानी-
क्यों होता हैं गुरु-चांडाल योग सबसे अशुभ-
गुरु-राहु की युति अत्यधिक अशुभ होती हैं। सभी ग्रहो की युति योगों में से यह युति सबसे अधिक अनिष्ट प्रद मानी जाती हैं। आखिर क्यों गुरु चांडालको सर्वाधिक अशुभ प्रभावी युति मानी गई हैं? क्या है इसके पीछे का रहस्य? जैसा की आप जान चुके हैं की यह दोष गुरु व राहु के कारण उत्पन्न होता हैं। गुरु सभी ग्रहों में सर्वाधिक शुभ ग्रह हैं। देव गुरु का स्वाभाव उदार हैं। गुरु की उदारता उनके द्वारा दिये फलों में स्पष्ट झलकती हैं। गुरु न्याय व धर्म के देवता है। सभी जगह सर्वत्र पूजे जाते हैं इसी कारण ज्योतिष शास्त्र में देवगुरु को कोई भी ग्रह शत्रु नही मानता। इसके विपरीत राहु छदम व सर्वाधिक पापी ग्रह हैं। भारतीय ज्योतिष में राहु की उत्पति सिंहिका नाम की राक्षसी से मानी जाती हैं। राहु के अन्दर राक्षसी शक्तियां हैं। झूठ, फरेब, धोखा, मलिन व नीच कर्म करने वाला, अंधकार प्रिय ग्रह है।
गुरु व राहु का प्रभाव एक दूसरे के विपरीत हैं। एक धार्मिक शिक्षा देता हैं तो दूसरा राक्षसी। एक दया सिखाता हैं तो दूसरा नाश। अत: आप समझ गये होंगे की इनका मिश्रित फल व्यक्ति को कैसा फल देगा। इस दोष के कारण व्यक्ति मथनी की तरह मथा जाता हैं।
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