पुत्र प्राप्‍ति के लिए है कितने व्रतों का विधान

हर कोई संतान के रूप में पुत्र की कामना करता है। यदि उसकी संतान पुत्री है तो वह पुत्र पाने के लिए लाखों जतन करता है। आज हम आपको बता रहे हैं हिंदू धर्म के ऐसे व्रतों के बारे में जो विशेष रूप से पुत्र रत्‍न का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

पुत्रदा एकादशी

पौष और श्रावण माह की शुक्‍ल पक्ष एकादशी को पुत्रदा एकादशी व्रत का विधान है। जिन लोगों की संतान नहीं है या जिन्‍हें पुत्र रत्‍न की कामना है उनके लिए यह व्रत वरदान स्‍वरूप है।

गणेश चतुर्थी

हर महीने की कृष्‍ण पक्ष की एकादशी की चतुर्थी तिथि को भगवान गणेश के व्रत का विशेष महत्‍व है। मान्‍यता है कि चतुर्थी के दिन व्रत रखने से संतान के रूप में पुत्र की प्राप्‍ति होती है।

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सकट चौथ व्रत

माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को ‘सकट चौथ’ कहा जाता है और इसी दिन संतानसुख की कामना की पूर्ति हेतु स्त्रियां भगवान गणेश का व्रत रखती हैं। पदम पुराण के अनुसार यह व्रत स्वयं भगवान गणेश ने मां पार्वती को बताया था।

मदन द्वादशी व्रत

चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को मदन द्वादशी का व्रत किया जाता है। इस व्रत में काम-पूजन की प्रधानता होती है इसीलिए इसे मदन द्वादशी कहा जाता है। वर्ष भर प्रत्येक द्वादशी को व्रत करने से पापों का नाश होता है और पुत्र की प्राप्‍ति होती है। प्राचीन काल में दिति ने भी अपने दैत्‍य पुत्रों की मृत्‍यु के पश्‍चात् मदन द्वादशी का व्रत कर पुत्र रत्‍न की प्राप्‍ति की थी।

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मुक्‍ताभरण सप्‍तमी व्रत

भाद्रपद माह की शुक्‍ल पक्ष सप्‍तमी तिथि को मुक्‍ताभरण सप्‍तमी व्रत किया जाता है। इस दिन भगवान शिव और मां गौरी का व्रत एवं पूजन करने से संतान की प्राप्‍ति होती है और संतान के सुख में वृद्धि होती है।

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