शनि की साढ़ेसाती का नाम सुनते ही लोग घबरा जाते हैं लेकिन ऐसा जरूरी नहीं है कि शनि की साढ़ेसाती आपके लिए अशुभ फल ही लेकर आए। शनि की साढ़ेसाती का शुभ-अशुभ प्रभाव कुंडली में शनि की स्थिति पर निर्भर करता है। आज हम आपको बताते हैं कि कुंडली के किस भाव या स्थान में होने पर शनि का फल शुभ और अशुभ होता है।
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जिस राशि में शनि होता है उससे तीसरी, सातवीं और दसवीं राशि पर पूर्ण दृष्टि रखता है। शनि की साढ़ेसाती सात वर्ष और ढ़ैय्या अढ़ाई वर्ष की होती है।
जानिए आपके ऊपर क्या होगा शनि के गोचर का प्रभाव
जब शनि गोचर में हो और जन्म की राशि से बारहवें भाव में भ्रमण करने लगे और वहां तब तक रहे जब तक वह जन्म राशि से द्वितीय भाव में स्थित रहता है। ऐसी स्थिति में शनि की साढ़ेसाती शुरु होती है।
अगर चंद्र राशि से आपकी शनि की साढ़ेसाती चल रही है किंतु जन्म लग्न से इस तरह का कोई योग नहीं बन रहा तो ऐसी स्थिति में शनि की साढ़ेसाती का पूर्ण अशुभ प्रभाव नहीं मिलता।
शनि की साढ़ेसाती के दौरान यदि शनि गोचर में जिस राशि में विराजमान है वह शनि की निज, स्वमूल त्रिकोण उच्च या मित्र राशि है तो शनि की साढ़ेसाती का फल अशुभ के स्थान पर शुभ होता है।
कुंडली में यदि शनि योग कारक हो या किसी ग्रह से युक्त अथवा दुष्ट हो, शुभ स्थान का शासक होकर शुभ भाव में बैठा हो और जिस राशि में उसकी उपस्थिति से साढ़ेसाती आरंभ हो रही हो वह राशि भी उच्च या स्वमूल त्रिकोण राशियों में से हो तो शनि उस जातक को शुभ अथवा सकारात्मक फल देता है।
शनि को करना है शांत तो करें ये काम
यदि शनि का निवास दाईं भुजा, पेट, मस्तक या नेत्र में हो तो शनि की साढ़ेसाती में जीत, फायदा, राजसुख और उन्नति की प्राप्ति होती है।
कुंडली के इन भावों में शनि देगा कैसा फल ?
यदि शनि की साढ़ेसाती अशुभ फलदायक है लेकिन कुंडली में महादशा, अंतर्दशा और प्रत्यंतर दशा कुछ ऐसे ग्रहों की है जो कुंडली में योगकारक, शुभ स्थान के स्वामी या शुभ्र ग्रह या कारक ग्रहों के साथ हो या उनसे दुष्ट हो तो शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव क्षीण हो जाता है।
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