प्रथम घर -: यहां विराजमान गुरू आपको मनोहर व्यक्तित्त्व का धनी, बलवान और दीर्घायु बनाताहैं। ऐसे लोग स्पष्ट वक्ता और स्वाभिमानी प्रवृत्ति के होते हैं। गुरू आपको स्वभाव से उदार बनाता है और आपके दिल में ब्राह्मणों और देवताओं के प्रति श्रद्धा भाव रहता है।
दूसरा घर -: यदि गुरू यहां विराजमान है तो आप दानी स्वभाव के होंगे। आप लोग दूसरों के लिए अच्छे काम करते हैं। जीवन साथी उत्तम होता है जो हर तरह से आपका साथ देता है। आपको विवादों में पड़ना बिल्कुल नही भाता।
तीसरा घर -: यहां गुरू का होना आपके धार्मिक होने का प्रमाण है। तीसरे घर में गुरू आपको कंजूस भी बनाता है। ऐसे लोग अपने परिवार और बच्चों के प्रति बहुत मोह नहीं करते।
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चौथा घर -: यहां गुरू की उपस्थिति आपको ज्ञानी बनाती है। आपको कई बार अथॉरिटी से फायदा मिलता है। आपको शत्रुओ से भय रहता है। आप भी गुरू के यहां होने से धार्मिक प्रवृत्ति के होते हैं।
पांचवा घर -: यहां विराजमान गुरू आपको अच्दे मित्र देता है जो हर परिस्थति में आपके साथ खड़े होते हैं। आप किसी प्रभावी व्यक्ति के सलाहकार बनते हैं और आपकी सलाह पर लोग ध्यान देते हैं। आपके मंत्र शास्त्र का ज्ञान भी गुरू के इस भाव में होने के कारण ही है।
छठा घर -: गुरू अगर यहां विराजमान हैं तो आप आलसी होंगे। साथ ही आपको काला जादू जैसे कामों में भी आपकी रूचि होगी। आपका भाग्य भी आपके साथ नहीं होता है साथ ही आप अपने कटुवचनों से दूसरों को अपने पास ठहरने भी नहीं देते।
सातवां घर -: यहां गुरू का विराजमान होना आपको विनम्र बनाता है। आप अच्छे राजनयिक होते हैं। जीवनसाथी भी आपको अच्छा मिलता है। आपकी शिक्षा भी बहुत अच्छी होती है। यहां गुरू के होने से विवाह के उपरांत व्यक्ति को लाभ होता है।
आठवां घर -: यहां गुरू का होना इस बात के संकेत होते हैं कि आपको बोलने में परेशानी होती है। लेकिन आपको गुरू एक विशाल हृदय देता है जिससे आप हमेशा दूसरों के हित के बारे में ही सोचते रहते हैं। यह आदत आपको ज्यादा समय दुखी ही रखती है। इस स्थिति में यदि आपके संबंध विधवा, तलाकशुदा या किसी अकेली युवति से बनते हैं तो कोई अचरज की बात नहीं है।
नौंवा घर -: यहां गुरू का होना आपको धर्म, कानून और अध्यात्म के क्षेत्र में उच्च ज्ञान प्राप्त कराता है जिसकी वजह से आप नाम और शोहरत भी प्राप्त करते हैं। अगर इस भाव में गुरू विराजमान है तो यह आपको अपनी बात का पक्का बनाता है अर्थात आप जो कहते हैं वो किसी भी कीमत में करते हैं। आप दीर्घायु भी होते हैं।
दसवां घर -: इस भाव में विराजमान गुरू आपको तभी लाभ देगा जब आप चालाक और धूर्त हों। तो अगर आप चालाकी करते हैं तो अवश्य आपको लाभ हो रहा होगा। इसके अलावा अगर दूसरे, चौथे और छठे भाव में मित्र ग्रह हैं तो आप आर्थिक रूप से बहुत मजबूत होते हैं।
ग्यारहवां घर -:यहां गुरू आपकी संगिनी को या साथी को दुखी रखता है। कोई कारण हो या नही आपका जीवनसाथी आपसे दुखी ही रहता है। यहां बुध अगर सही स्थिति में भी हो तो भी आपको कर्ज का बोझ रहता ही है।
बारहवां घर -: गुरू का बारहवें भाव में होना आपको धन की कमी नहीं होने देता है। आप शक्तिशाली होते हैं किन्तु अपनी शक्ति का इस्तेमाल गलत कामों में करते हैं। आपका आकर्षण अच्छे से ज्यादा बुरे लोगों में होता है और यही कर्मों के बारे में भी कहा जा सकता है।
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