दुर्गा पूजा 2019 मे कब है? जानें तिथि व शुभ मुहूर्त

दुर्गा पूजा हिन्दू धर्म में बहुत ही धूमधाम से मनाई जाती है। इस दौरान देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। लोग दुर्गा पूजा को दुर्गोत्सव के नाम से भी जानते है। प्रत्येक वर्ष दुर्गा पूजा 5 दिन तक मनाई जाती है। इन पावन पांच दिनों को षष्ठी, महासप्तमी, महाष्टमी, महानवमी तथा विजयादशमी के नाम से लोग जानते है। पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा बहुत ही धूमधाम से मनाई जाती है। सामान्यता कल्पारम्भ देवी पक्ष के दौरान षष्ठी तिथि के दिन होता है। कल्पारम्भ का अर्थ है- देवी दुर्गा का आवाहन करना।

दुर्गा पूजा भारतीय राज्यों असम, बिहार, झारखंड, मणिपुर, ओडिशा, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में व्यापक रूप से मनाया जाता है, जहाँ इस समय पांच दिन की वार्षिक छुट्टी रहती है। वर्तमान में विभिन्न प्रवासी आसामी और बंगाली सांस्कृतिक संगठन, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, फ़्रांस, नीदरलैंड सिंगापुर और कुवैत सहित विभिन्न देशों में आयोजित करवाते है।

Durga Puja 2019

4 अक्टूबर से 8 अक्टूबर के दरम्यान दुर्गा पूजा का पर्व मनाया जाएगा

दुर्गा पूजा का प्रथम दिन– 4 अक्टूबर 2019 षष्ठी कल्पारम्भ, आमन्त्रण के रूप में मनाया जाता है।

दुर्गा पूजा का दूसरा दिन– 5 अक्टूबर 2019 सप्तमी यह नवपत्रिका पूजन दिन होता है।

दुर्गा पूजा का तीसरा दिन– 6 अक्टूबर 2019 अष्टमी दुर्गाष्टमी के रूप में मनाया जाता है।

दुर्गा पूजा का चौथा दिन– 7 अक्टूबर 2019 नवमी बंगाल में यह दिन दुर्गा बलिदान, बंगाल महानवमी के रूप में मनाया जाता है।

दुर्गा पूजा का पांचवा दिन– 8 अक्टूबर 2019 दशमी का यह दिन दुर्गा विसर्जन, दशहरा, सिंदूर उत्सव के रूप में मनाया जाता है।

दुर्गा पूजा प.बंगाल का महापर्व क्यों है, जाने ख़ास बातें

दुर्गा पूजा के दौरान देश भर में ख़ास कर प. बंगाल में सभी जगह रौनक दिखाई देती है, वह नजारा आँखों को मंत्रमुग्ध कर देता है। मन को माता की भक्ति में विलीन कर देता है। पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा आँखों के सामने नजर आनी लगती है, पूजा की पवित्रता, बड़े-बड़े भव्य पंडाल, सभी जगह रंगों की छटा, सुंदर मनमोहक देवियों की प्रतिमा, सिन्दूर खेला, धूनुची नृत्य और भी कई ऐसी लुभावनी क्रियाएं है जो इन दिनों में की जाती है, जिनका शब्दों में वर्णन करना कठिन है। बड़े-बड़े और भव्य पंडाल बंगाल की काया ही पलट देते है, इस त्यौहार के दौरान यहाँ का पूरा वातावरण शक्ति की देवी दुर्गा के रंग में रंग जाता है। चारों तरफ देवी की आराधना की जाती है, हिन्दुओं के लिए दुर्गा पूजा से कोई बड़ा उत्सव प. बंगाल में कोई दूसरा नहीं है।

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अष्टमी का महत्व

इस दिन सभी लोग दुर्गा माता को फूल अर्पित करते है। बंगाल के लोग दुनिया के किसी भी कोने में रह रहे हो वो अष्टमी के दिन सुबह-सुबह उठ कर दुर्गा को फूल अर्पित करते है। इसे माँ दुर्गा को पुष्पांजलि अर्पित करना कहा जाता है। इस पर्व को कोलकाता में अष्टमी के दिन जोर शोर से मनाया जाता है।

भव्य दुर्गा पंडालों की विशेषता

देवी की भव्य प्रतिमा- बंगाल के विभिन्न शहरों में नवरात्रि के दौरान माँ दुर्गा के महिषासुर मर्दिनी स्वरुप की पूजा की जाती है। दुर्गा पूजा पंडालों में दुर्गा की प्रतिमा महिषासुर का वध करते हुए बनाई जाती है। इस पांडाल में अनेक देवी-देवताओं की प्रतिमा होती है। इस दृश्य को बंगाल में चाला कहा जाता है। देवी त्रिशूल को पकडे हुए होती है और उनके चरणों में महिषासुर नाम का असुर होता है। देवी के पीछे उनका वाहन शेर होता है और दाएँ ओर  कार्तिक और बाएँ ओर लक्ष्मी-गणेश होते है और साथ ही वही छाल पर भोलेनाथ की प्रतिमा होती है।

संध्या आरती

दुर्गा पूजा के दौरान संध्या आरती का ख़ास महत्व है। इस दिन पूरे बंगाल में संध्या आरती की रौनक इतनी चमकदार और खुबसूरत होती है की लोग इसे देखने दूर-दूर से यहाँ पहुँचते है। इस दिन लोग बंगाली परिधान में अपने आप को सजाते संवारते है और इस पूजा में शामिल होते है। बंगाल के लोग पारम्पारिक परिधानों में इस सुन्दरता को और बढ़ा देते है। चारों तरफ उत्सव का माहौल बना देते है। नौ दिनों तक चलने वाले इस संध्या आरती के दौरान नौ दिनों तक संध्या आरती की जाती है। नगाड़ों, घंटियों, शंख, ढोल, संगीत और नाच-गाने के बीच संध्या आरती की रस्म पूरी की जाती है।

चोखू दान

यह परंपरा सबसे पुरानी है। चोखू दान के दौरान दुर्गा की आँखों को चढ़ावा दिया जाता है। चाला बनाने में 3 से 4 महीने का समय लगता है, इससे दुर्गा की आँखों को अंत में बनाया जाता है।

सिंदूर खेला

दुर्गा पूजा के आख़िरी दिन यानी की दशमी के दिन महिलायें सिन्दूर खेला खेलती है, इस खेल में वो एक-दूसरे पर सिन्दूर डालती है और दूसरों को रंग लगाती है। इसी के साथ इस पर्व का अंत हो जाता है, जिसकी तैयारी महीनों पहले शुरू हो जाती है।

कुमारी पूजा

कोलकाता में सम्पूर्ण पूजा के दौरान देवी दुर्गा की पूजा विभिन्न रूपों में की जाती है, इन रूपों में सबसे प्रसिद्ध रूप है कुमारी रूप का। इस दौरान देवी के सामने कुमारी की पूजा की जाती है। यह देवी की पूजा का सबसे शुद्ध और पवित्र रूप माना जाता है। 1 से 12 साल की लड़कियों का चयन इस पूजा के लिए किया जाता है और उनकी पूजा आरती की जाती है।   

धुनुची नृत्य

धुनुची नृत्य असल में शक्ति नृत्य है। बंगाल की परम्परा में यह नृत्य माँ भवानी की शक्ति और ऊर्जा बढ़ाने के लिए किया जाता है। पीछे की ओर झुका सिर और दोनों हाथों के बीच अदला-बदली करती धुनुची और ढाक की थाप पर थिरकते कदम शहर के दुर्गापूजा पंडालों में धुनुची नृत्य का यह नजारा देख कर आँखे ठहर जाती है पुराणों के अनुसार महिषासुर बहुत ही बलशाली था, उसे कोई मार नहीं सकता था। माँ भवानी उसका वध करने जाती है, इसलिए माँ के भक्त उनकी शक्ति और ऊर्जा बढ़ाने के लिए धुनुची नृत्य करते है। धुनुची नृत्य सप्तमी से शुरू होता है और अष्टमी और नवमी तक चलता है।  

 विजया दशमी

दुर्गा पूजा का सबसे आख़िरी दिन विजया दशमी होता है। इस दिन बंगाल की सड़कों में हर तरफ भीड़ ही भीड़ दिखाई पड़ती है। दशमी के दिन माँ दुर्गा का विसर्जन किया जाता है और इस तरह से देवी दुर्गा अपने परिवार के पास वापस लौट जाती है। इस दिन पूजा करने वाले सभी लोग एक दूसरे के घर जाते है और एकदूसरे को शुभकामना देते है और मिठाई देते है।   

भक्तो आपको अगर इस मनोरम दृश्य का आनन्द लेना है तो आपको इन दिनों में कोलकाता अवश्य जाना चाहिए। दुर्गा पूजा का नजारा आँखों को मंत्रमुग्ध कर देता है। मन और आत्मा को देवी दुर्गा की भक्ति में विलीन कर देता है।

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