दीपावली 2019 – 27 अक्टूबर (रविवार)
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त- सायं 06:42 से 08:11 तक
प्रदोष काल- सायं 05:40से 08:16 तक
वृषभ काल- सायं 06:44 से 08: 39 तक
अमावस्या तिथि आरम्भ -12 बजकर 23 मिनिट (27 अक्टूबर)
अमावस्या तिथि समाप्त -09 बजकर 08 मिनिट (28 अक्टूबर)
दीपावली जिसे हम रोशनी का पर्व भी कहते है, वर्ष 2019 में दीपावली 27 अक्टूबर रविवार के दिन मनाई जायेगी। हम सभी भारतवर्ष में रहने वाले दीपावली के पर्व के बारे में जानते ही है। प्रभु श्री राम की 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या वापसी पर लोगों ने उनका स्वागत घी के दिए जलाकर बहुत ही धूमधाम से किया था, रावण का वध करने के बाद श्री राम माता सीता को लंका से लेकर अयोध्या वापिस लौटे थे उनके आने की ख़ुशी में ही दीपावली का पर्व मनाया जाता है। इसी तरह असत्य पर सत्य की जीत हुई थी।
सभी हिन्दू लोग कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली का त्यौहार मनाते है। इस दिन शाम को घर में पूरा परिवार मिलकर पूजा करता है। यह त्यौहार जब आता है तब अपने संग अनेक त्यौहार लेकर आता है। दिवाली का त्यौहार जीवन में ज्ञान रुपी प्रकाश लानेवाला त्यौहार है, तो वही सुख-समृद्धि की कामना के लिए भी इस त्यौहार से बढ़कर दूसरा और कोई त्यौहार नहीं है, इसलिए इस दिन लक्ष्मी की पूजा की जाती है। सांस्कृतिक, धार्मिक और आर्थिक रूप से दीपावली बहुत महत्वपूर्ण त्यौहार है।
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कई सप्ताह पूर्व ही दीवाली की तैयारियां शुरू हो जाती है। लोग अपने घरों-दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरम्भ कर देते है। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन, सफेदी आदि का काम होने लगता है। लोग अपनी दुकानों को भी साफ़ सुथरा कर सजाते हैं। बाजारों में गलियों को भी सुनहरी झंडियों से सजाया जाता है। दिवाली से पहले ही घर-मोहल्ले, बाज़ार सब साफ़-सुथरे तथा सजे-धजे नजर आने लगते है, रोशनी की जगमगाहट से पूरा भारत देश खिल उठता है। इस दिन पूरे देश में आतिशबाजी की जाती है, लोगों में दीपावली को लेकर बहुत उमंग होती है।
दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन का महत्व
माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद पाने के लिए दीपावली को बहुत ही शुभ माना जाता है। सभी मनोकामनाओं की पूर्ति और घर में सुख-समृद्धि बनी रहें और माँ लक्ष्मी सदा घर में विराजमान रहे इसलिए दीपावली के दिन माता लक्ष्मी की उपासना की जाती है। इस दिन सूर्यास्त के पश्चात प्रदोष काल के दौरान स्थिर लग्न (वृषभ लग्न को स्थिर लग्न माना जाता है) में माता लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। लग्न तथा मुहूर्त का समय स्थान के अनुसार ही देखना चाहिए उसके उपरान्त पूर्ण श्रद्धा भाव से माँ लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए।
दीपावली के पाँचों दिनों का हिन्दुओं के लिए महत्व
दीपावली के दिव्य चरित्र के अनुसार दीपावली का पांच दिनों का समारोह अलग-अलग महत्व को दर्शाता है। दीपावली का पहला दिन धनतेरस हिन्दुओं के नए वित्तीय वर्ष के प्रारंभ को दर्शाता है। दीपावली का दूसरा दिन छोटी दीवाली या नरक चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है, जो भगवान कृष्ण की राक्षस नरकासुर पर जीत के रूप में जाना जाता है। दीवाली का तीसरा दिन मुख्य दीपावली के नाम से जाना जाता है, जो हिन्दुओं द्वारा देवी लक्ष्मी की पूजा करके देवी लक्ष्मी के जन्म दिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, जो बहुत समय पहले देवताओं और राक्षसों द्वारा समुद्र मंथन से उत्पन्न की गयी थी। वे मानते है की इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा करने से उनके ऊपर धन, बुद्धि और समृद्धि की बरसात होगी। दीपावली का चौथा दिन बलि प्रतिपदा या गोवर्धन पूजा के नाम से जाना जाता है, जो भगवान विष्णु की राक्षस राजा बलि पर विजय के साथ साथ भगवान कृष्ण की घमंडी इंद्र के ऊपर विजय के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। दीपावली का पांचवा और अंतिम दिन यम द्वितीया या भाई दूज के नाम से जाना जाता है, जो हिन्दुओं में भाई-बहनों के रिश्ते और कर्तव्यों को मजबूती प्रदान करता है।
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दीपावली का आध्यात्मिक महत्व
दीपावली को विभिन्न ऐतिहासिक घटनाओं, कहानियों या मिथकों को चिन्हित करने के लिए हिन्दू, जैन और सिखों द्वारा मनाई जाती है। लेकिन वे सब बुराई पर अच्छाई, अन्धकार पर प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान और निराशा पर आशा की विजय को दर्शाते है। हिन्दू दर्शन में योग, वेदान्त और सामाख्या विद्यालय सभी में यह विश्वास है कि इस भौतिक शरीर और मन से परे वहां कुछ है जो शुद्ध अनंत और शाश्वत है, जिसे आत्मा कहा गया है। दीपावली अन्धकार पर आंतरिक प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान, असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई का पर्व है।
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