चंद्र ग्रहण- 5 जुलाई 2020, जानिए ग्रहण का समय और धार्मिक महत्व

इस साल का तीसरा चंद्र ग्रहण 5 जुलाई 2020 को लगेगा। जुलाई के प्रथम सप्ताह में लगने वाला चंद्र ग्रहण इस वर्ष का तीसरा चंद्र ग्रहण होगा। इस वर्ष 10 जनवरी को पहला तथा 5 जून को दूसरा चंद्र ग्रहण लगा था। इस साल कुल 4 चंद्र ग्रहण लगेंगे। नवंबर महीने की 30 तारीख को आख़िरी चंद्र ग्रहण लगेगा, जो इस वर्ष का अंतिम चंद्र ग्रहण होगा। 5 जुलाई को लगने वाला चंद्र ग्रहण धनु राशि में लगने जा रहा हैं, जिसके कारण धनु राशि के जातकों के लिए कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।

क्या होता हैं चंद्र ग्रहण?

जब चंद्रमा और सूर्य के बीच में धरती आ जाती हैं और धरती की पूर्ण या आंशिक छाया चन्द्र पर पड़ती हैं तब चंद्र ग्रहण होता हैं। चंद्र ग्रहण नंगी आँखों से देखा जा सकता हैं। इसे देखने के लिए किसी ख़ास चश्मे की आवश्यकता नहीं होती। जबकि सूर्य ग्रहण को नंगी आँखों से देखना आँखों के लिए नुकसानदायक माना जाता हैं। 

चंद्र ग्रहण का समय

उपच्छाया से पहला स्पर्श -सुबह 8 बजकर 38 मिनिट

परमग्रास चंद्र ग्रहण – सुबह 9 बजकर 59 मिनिट

उपच्छाया से अंतिम स्पर्श- सुबह 11 बजकर 21 मिनिट

चन्द्र ग्रहण की कुल अवधि – 2 घंटे 43 मिनिट और 24 सेकंड

चन्द्र ग्रहण काल में क्या नहीं करना चाहिए 

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हिन्दू शास्त्रों के मुताबिक ग्रहण चाहे कोई भी हो, इस दरम्यान किसी प्रकार का कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। चंद्र ग्रहण के समय सोना, ब्रश करना, कंघी करना, ट्रेवल करना, चाकू तथा धारदार चीजों का इस्तेमाल करना, भोजन पकाना तथा भोजन करना अशुभ माना जाता हैं। ग्रहण काल की समाप्ति  पर स्नान करने की तथा घर की साफ़ सफाई करने की परम्परा हैं। 

चंद्र ग्रहण सूतक काल

इस तीसरे चंद्र ग्रहण में सूतक काल मान्य नहीं होगा। 5 जुलाई को लगने वाला चंद्र ग्रहण ज्यादा शक्तिशाली नहीं हैं, फिर भी हमें अपना बचाव करना हैं, क्योंकि एक महीने में दो या दो से अधिक ग्रहण लगते हैं, तो इनका मानव के जीवन पर विपरीत प्रभाव देखने को मिलता हैं। हमें अपनी तरफ से सभी प्रकार की सावधानियां बरतने की जरूरत हैं।

धार्मिक महत्व

वैज्ञानिकों की माने तो चन्द्र ग्रहण पूरी तरह से एक सामान्य घटना हैं, परन्तु हिन्दू धर्म में चन्द्र ग्रहण एक धार्मिक घटना हैं, जिसका हिन्दू धर्म में ख़ास महत्व हैं, इसीलिए हिन्दू धर्म में ग्रहण काल में किसी प्रकार का कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता, यहाँ तक की मंदिरों के कपाट भी बंद किये जाते हैं, पूजा -पाठ पूर्णत: वर्जित होती हैं।   

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