भैया दूज 2020, जानें ख़ास बातें, तिथि और शुभ मुहूर्त

भैया दूज मुहूर्त :-

16 नवंबर 2020, सोमवार

तिलक का समय:- 13:10:03 से 15:18:27 तक

कुल अवधि:- 2 घंटे 8 मिनट

कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जानेवाला यह पर्व यम द्वितीया नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व रक्षाबंधन की तरह ही भाई-बहन के रिश्ते पर आधारित पर्व हैं, भैया दूज दीपावली के दो दिन बाद आने वाला एक ऐसा उत्सव हैं, जो भाई के प्रति बहन के अगाध प्रेम और स्नेह को अभिव्यक्त करता हैं। इस दिन बहने अपने भाइयों को तिलक लगाकर उनकी लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना करती है। तो भाई भी शगुन के रूप में बहन को उपहार भेंट करता है। भैया दूज के दिन मृत्यु के देवता यमराज का पूजन भी होता है। मान्यता है कि इसी दिन यम देव अपनी बहन यमुना के बुलावे पर उनके घर भोजन करने आये थे।

भैया दूज मनाने के नियम

  • शास्त्रों के अनुसार कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि जब जब अपराह्न (दिन का चौथा भाग) के समय आये तो उस दिन भैया दूज मनाई जाती है।
  • अगर दोनों दिन अपराह्न के समय द्वितीया तिथि लग जाती है तो भैया दूज अगले दिन मनाने का विधान है। इसके अलावा यदि दोनों दिन अपराह्न के समय द्वितीया तिथि नहीं आती है, तो भी भैया दूज अगले दिन मनाई जानी चाहिए।
  • एक अन्य मत के अनुसार अगर कार्तिक शुक्ल पक्ष में जब मध्याह्न (दिन का तीसरा भाग) के समय प्रतिपदा तिथि शुरू हो तो भैया दूज मनानी चाहिए।
  • भैया दूज के दिन दोपहर के बाद ही भाई को तिलक व भोजन कराना चाहिए। इसके अलावा यम पूजन भी दोपहर के बाद किया जाना चाहिए।

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भैया दूज मनाने के पीछे की पौराणिक मान्यता

हिंदू धर्म में जितने भी पर्व और त्यौहार होते हैं उनसे कहीं ना कहीं पौराणिक मान्यता और कथाएं जुड़ी होती हैं। भैया दूज मनाने के पीछे की पौराणिक कथा इस प्रकार हैं:-

कार्तिक शुक्ल द्वितीया को पूर्व काल में यमुना ने अपने भाई यम देव को अपने घर पर बड़े ही आदर सत्कार के साथ भोजन कराया था, जिससे उस दिन नारकी जीवों को यातना से छुटकारा मिला और वे तृप्त हुए। पापों से मुक्ति पाकर वे सभी सांसारिक बन्धनों से मुक्त हो गए। उन सब ने मिलकर एक महान उत्सव मनाया जो यमलोक के राज्य को सुख पहुँचाने वाला था। इसी कारण से यह तिथि तीनों लोकों में यम द्वितीया के नाम से विख्यात हुई। जिस तिथि को यमुना ने यमदेव को अपने घर भोजन कराया था, यदि उस तिथि को भाई अपनी बहन के हाथ का बना स्वादिष्ट और उत्तम भोजन ग्रहण करता है तो उसे उत्तम भोजन के साथ धन की प्राप्ति होती है। पद्मपुराण में कहा गया है कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को पूर्वाह्न में यम की पूजा करके यमुना में स्नान करने वाला मनुष्य यमलोक की यातनाएं नहीं भोगता अर्थात उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।  

भैया दूज  को यम द्वितीया या भाई दूज के नाम से क्यों जाना जाता है?

यह कथा सूर्यदेव और छाया के पुत्र यमराज तथा पुत्री यमुना से सम्बंधित है। यमुना अक्सर अपने भाई यमराज से स्नेहवश निवेदन करती थी कि वे उनके घर आकर भोजन ग्रहण करें, परन्तु यमराज काफी व्यस्त रहते थे, जिसके कारण वह अपनी बहन की बात को टाल देते थे। कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को यमुना अपने द्वार पर भाई यमराज को खड़ा देखकर आनन्दित हो उठी। यमुना ने अपने भाई का बहुत ही अच्छे तरीके से स्वागत किया, भोजन करवाया। बहन यमुना के प्रेम, आदर, समर्पण को देखकर यमराज ने प्रसन्न होकर अपनी बहन से वर मांगने को कहा, तब यमुना ने भाई यमराज से कहा कि आप प्रतिवर्ष इस दिन मेरे यहाँ भोजन करने आयें तथा इस दिन जो भी बहन अपने भाई को टीका कर भोजन खिलाएं, उसे आपका भय न रहे। बहन का प्रेम और आदर-सत्कार देखकर यमराज तथास्तु कहकर यमलोक चले गए। तब से यह मान्यता है की जो भाई आज भाई दूज के दिन पूरी श्रद्धा से बहन के आतिथ्य को स्वीकार करता है, उसे और उसकी बहन को यमदेव का भय नहीं रहता। तब से ही दीपावली का पांचवा और अंतिम दिन यम द्वितीया या भाई दूज के नाम से जाना जाता है, जो हिन्दुओं में भाई-बहनों के रिश्ते और कर्तव्यों को मजबूती प्रदान करता है | 

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