बसंत पंचमी – 29 जनवरी, बुधवार
पूजा मुहूर्त- 10:47 से 12:35 तक
पंचमी तिथि आरम्भ- 10:47 बजे
बसंत पंचमी हिन्दुओं का पवित्र पर्व माना जाता है। माघ माह की शुक्ल पंचमी को बसंत पंचमी मनाई जाती है। बसंत पंचमी के दिन से ही वसंत ऋतु का प्रारम्भ होता है। इस दिन माँ सरस्वती की पूजा की जाती है। इस दिन विशेष रूप से पीले वस्त्र धारण करने की प्रथा है भारत की महिलायें इस दिन पिला वस्त्र धारण करना बहुत ही शुभ मानती है। यह पर्व भारत के अलावा बांग्लादेश और नेपाल में भी बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है। हमेशा से ही बसंत पंचमी की पूजा सूर्योदय के बाद और दिन के मध्य भाग से पहले की जाती है। बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी, सरस्वती पंचमी तथा श्रीपंचमी के नाम से भी लोग जानते है।
हम जानते है की भारत में छ: ऋतुओं में से बसंत ऋतु को सबसे ज्यादा लोग पसंद करते है, पतझड़ ऋतु के बाद बसंत ऋतु का आगमन होता है। चारों और रंग-बिरंगे फूल खिले हुए होते है, पक्षियों की मधुर चहक से मानो सारी सृष्टि खिल उठी हो। खेतों में पीली सरसों लहराती हुई बहुत ही मनमोहक लगती है, जैसे धरती पर पीला सोना बिखरा हुआ हो। इस समय गेहूं की बालियाँ भी पक कर तैयार होकर लहराती हुई मदमस्त नजर आती है, यह नजारा मन को मोह लेता है और मन में प्रसन्नता का भाव भर देता है। बसंत ऋतु को सभी ऋतुओं का राजा अर्थात ऋतुराज इसलिए ही कहा गया है। इस दिन भगवान विष्णु कामदेव तथा रति की पूजा की जाती है। बसंत पंचमी के दिन इस ब्रह्माण्ड के रचियता ब्रह्मा जी ने सरस्वती जी की रचना की थी इसलिए इस दिन को माता सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते है।
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बसंत पंचमी का महत्व
इस दिन को हिन्दू धर्म में बहुत ही शुभ माना जाता है, बसंत पंचमी से पांच दिन पहले से बसंत ऋतु का आरम्भ माना जाता है। चारों और रंग-बिरंगे फूल खिले हुए होते है, मानो सारी सृष्टि खिल उठी हो। चारों तरफ खुशहाली का वातावरण छाया रहता है। इस दिन सरस्वती की पूजा की जाती है, इसलिए छात्रों के लिए इस दिन को बहुत ही श्रेष्ठ माना जाता है। अगर आपको नए घर में गृहप्रवेश करना है तो उसके लिए भी यह शुभ मुहूर्त माना जाता है। नए व्यापार-काम की शुरुआत इस दिन करना शुभ होता है। अगर किसी शुभ कार्य के लिए शुभ मुहूर्त न मिल रहा हो तो बसंत पंचमी का दिन शुभ माना जाता है, इस दिन कोई भी शुभ काम किया जा सकता है, क्योंकि बसंत पंचमी को अबूझ मुहूर्तों में शामिल किया जाता है, इसलिए भी इस दिन का हिन्दू धर्म में ख़ास महत्व है।
बसंत पंचमी का पौराणिक महत्व रामायण काल से जुड़ा हुआ है। जब माँ सीता को रावण हर कर लंका ले जाता है तो भगवान श्री राम उन्हें खोजते हुए जिन स्थानों पर गए थे उनमे दण्डकारण्य भी था। इसी जगह शबरी नामक भीलनी रहती थी। जब राम उसकी कुटिया में पधारें तो वह अपनी सुध-बुध खो बैठी और रामजी के लिए जो मीठे बेर वो लेकर आयी थी प्रेम वश उसने बेर मीठे है या खट्टे यह देखने के लिए जूठे किये थे वही मीठे बेर राम जी को खिलाने लगी। ऐसी मान्यता है की गुजरात के डांग जिले में वह स्थान आज भी है जहाँ शबरी माँ का आश्रम है। बसंत पंचमी के दिन भगवान राम वहां पधारे थे। आज भी उस क्षेत्र के निवासी एक शिला को पूजते है, जिसमे उनकी श्रद्धा है की भगवान श्रीराम आकर इसी शिला पर बैठे थे, यहाँ शबरी माता का एक मंदिर भी है।
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पीले रंग का महत्व
बसंत का अर्थ होता है मादकता और बसंत का रंग भी बसन्ती रंग यानी पीला रंग माना गया है। उत्तर भारत के कई क्षेत्रों में बसंत पंचमी के दिन पीले पकवान बनाए जाते है और पीले वस्त्र धारण किये जाते है। इस समय सरसों पक जाती है और उस पर पीले फूल खिले हुए दिखाई देते है इसलिए इस दिन पीले रंग का अधिक महत्व होता है। इस दिन हर तरफ उत्साह का माहौल बना होता है। इस समय पेड-पौधे लहराते है, नए फूल आते है, पौधों में ताजे और नए फूल खिलखिलाते है, वृक्षों में नई कोपलें आती है। इस ऋतु में न ज्यादा ठंड होती है और न ज्यादा गर्मी यह मौसम स्वास्थ्य के लिए भी बहुत उत्तम माना गया है।
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