गोवर्धन पूजा 2019 -जानिये विधि, मुहूर्त और कथा

गोवर्धन पूजा तिथि- 28 अक्टूबर

गोवर्धन पूजा सायंकाल मुहूर्त- दोपहर बाद 03:25 से शाम 5:39 मिनिट तक

हिन्दू धर्म में गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व है। दीपावली के अगले ही दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा की जाती है। यह पर्व अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है। यह दीपावली का चौथा दिन बलि प्रतिपदा के नाम से भी जाना जाता है, जो भगवान विष्णु की राक्षस राजा बलि पर विजय के साथ साथ भगवान कृष्ण की घमंडी इंद्र के ऊपर विजय के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस पर्व में प्रकृति एवं मानव का सीधा संबंध स्थापित होता है। इस पर्व में गोधन यानि गौ माता की पूजा की जाती है। हिन्दू धर्म के अनुसार शास्त्रों में बताया गया है कि गाय उतनी ही पवित्र है जितना माँ गंगा का निर्मल जल। यह पर्व समस्त भारत में मनाया जाता है लेकिन उत्तर भारत में ख़ासकर ब्रज भूमि मथुरा, वृन्दावन, नंदगाव, गोकुल, बरसाना आदि पर इसकी भव्यता और बढ़ जाती हैं, जहाँ स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने गोकुल के लोगों को गोवर्धन पूजा के लिए प्रेरित किया था।    

Govardhan Puja 2019

गोवर्धन पूजा कथा

यह द्वापर युग की घटना है, कहते है ब्रज में इंद्र देव की पूजा की जा रही थी, वहां भगवान कृष्ण पहुंचे और उन्होंने गोकुल वासियों से पूछा की यहाँ किसकी पूजा की जा रही है। सभी गोकुल वासियों ने कहा देवराज इंद्र की यहाँ पूजा हो रही है, तब भगवान श्रीकृष्ण ने गोकुल वासियों से कहा कि इंद्र से हमें कोई लाभ नहीं होता। वर्षा करना उनका कर्तव्य यानि दायित्व है और वे सिर्फ अपने कर्तव्यों का पालन करते है। जबकि गोवर्धन पर्वत हमारे गौ धन का संवर्धन एवं संरक्षण करते है, जिससे पर्यावरण शुद्ध होता है, इसलिए इंद्र की नहीं गोवर्धन की पूजा की जानी चाहिए। सभी लोग श्रीकृष्ण की बात मानकर गोवर्धन पूजा करने लगे, जिसके कारण इंद्र क्रोधित हो उठे, उन्होंने मेघों को आदेश दिया कि जाओ गोकुल का विनाश कर दो। भारी वर्षा से सभी भयभीत हो गये तब श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठिका ऊँगली पर उठाकर सभी गोकुल वासियों को इंद्र के कोप से बचाया। जब इंद्र को ज्ञात हुआ कि श्रीकृष्ण भगवान श्रीहरि विष्णु के अवतार है तो इन्द्रदेव अपनी मुर्खता पर बहुत लज्जित हुए तथा भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा याचना करने लगे तबसे आज तक गोवर्धन पूजा बड़े ही धूमधाम तथा श्रद्धा और हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। 

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गोवर्धन पूजा विधि

हिन्दू धर्म में इस दिन जो लोग गोवर्धन पूजा को मानते है वो अपने घर के आँगन में गाय के गोबर से गोवर्धन जी की मूर्ति बनाकर उनका पूजन करते है। गोवर्धन पूजा सुबह या शाम के समय की जाती है। पूजन के दौरान गोवर्धन पर धूप, दीप, नैवेद्य, जल, फल आदि चढ़ाएं जाते है, इसके बाद ब्रज के साक्षात देवता माने जाने वाले भगवान गिरिराज को प्रसन्न कराकर फूल, माला, धूप, चन्दन आदि से उनका पूजन किया जाता है। इसी दिन गाय-बैल और कृषि काम में आने वाले पशुओं की पूजा की जाती है। गायों को मिठाई का भोग लगाकर उनकी आरती उतारी जाती है तथा प्रदक्षिणा की जाती है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को भगवान के लिए भोग तथा यथासामर्थ्य अन्न से बने कच्चे-पक्के भोग, फल-फूल अनेक प्रकार के खाद्य पदार्थ जिन्हें छप्पन भोग कहते हैं का भोग लगाया जाता है। फिर सभी सामग्री अपने परिवार तथा मित्रों में वितरण कर प्रसाद ग्रहण किया जाता है।

गोवर्धन पूजा पर अन्नकूट उत्सव

गोवर्धन पूजा के दिन मंदिरों में अन्नकूट का आयोजन किया जाता है। अन्न कूट यानि की कई प्रकार के अन्न का मिश्रण, जिसे भोग के रूप में भगवान श्री कृष्ण को चढ़ाया जाता है। कई जगहों पर विशेष रूप से बाजरे की खिचडी बनाई जाती है, साथ ही तेल की पूड़ी आदि बनाने की परंपरा है। अन्नकूट के साथ साथ दूध से बनी मिठाई और स्वादिष्ट पकवान भोग में चढ़ाएं जाते है। पूजन के बाद इन पकवानों को प्रसाद के रूप में श्रद्धालोओ को बांटा जाता है। कई मंदिरों में अन्न कूट उत्सव के दौरान जगराता किया जाता है और भगवान श्री कृष्ण की आराधना कर उनसे खुशहाल जीवन की कामना की जाती है।

गोवर्धन पूजा का महत्व  

मान्यता है कि भगवान कृष्ण का इंद्र के अहंकार को तोड़ने के पीछे उद्देश्य ब्रज वासियों को गौ धन तथा पर्यावरण के महत्व को बतलाना था, ताकि वे उनकी रक्षा करें। आज भी हमारे जीवन में गौ माता का विशेष महत्व है। गौ माता द्वारा प्राप्त दूध हमारे जीवन में बेहद अहम स्थान रखता है। वैसे तो आज गोवर्धन पर्वत ब्रज में एक छोटे पहाड़ी के रूप में है, किन्तु इन्हें पर्वतों का राजा कहा जाता है, ऐसी संज्ञा गोवर्धन को इसलिए दी गई है क्योंकि यह भगवान कृष्ण के समय का एक मात्र स्थाई तथा स्थिर अवशेष है। उस काल की यमुना नदी जहाँ समय-समय पर अपनी धारा बदलती रहीं, वहीं गोवर्धन अपने मूल स्थान पर ही अविचलित रूप में विद्यमान रहे। गोवर्धन को भगवान कृष्ण का स्वरुप भी माना जाता है और इसी रूप में इनकी पूजा की जाती है। गर्ग संहिता में गोवर्धन के महत्व को दर्शाते हुए कहा गया है – गोवर्धन पर्वतों के राजा और हरि के प्रिय हैं। इसके समान पृथ्वी और स्वर्ग में दूसरा कोई तीर्थ नहीं है।  

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