करवा चौथ 2019
17 अक्टूबर – गुरूवार
पूजा मुहूर्त- 17:50:03 से 18:58:47 तक
चंद्रोदय का समय- 20:15:59
सुहागनों का पवित्र त्यौहार है करवा चौथ। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी के दिन करवा चौथ का व्रत किया जाता है, अपने पति की लम्बी आयु तथा अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए ही करवा चौथ का व्रत किया जाता है। भारत में हिन्दू धर्मग्रंथों, पौराणिक ग्रंथों और शास्त्रों के अनुसार हर महीने कोई न कोई व्रत या त्यौहार मनाया जाता है लेकिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को जो उपवास किया जाता है, उसका सुहागनों के लिए अधिक महत्व है। मान्यता है की इस दिन यदि विवाहित महिलायें व्रत रखें तो उनके पति की आयु लम्बी होती है और उनका गृहस्थ जीवन सुखद होने लगता है। उत्तर भारत खासकर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश में यह त्यौहार बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है, हालांकि भारत के अन्य राज्यों में भी इस त्यौहार को मनाया जाता है।
करवा चौथ की पौराणिक कथा
बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और एक बेटी थी जिसका नाम था करवा। सभी सातों भाई अपनी एकलौती बहन करवा से बहुत स्नेह करते थे। सबसे पहले बहन को भोजन कराते थे बाद में स्वयं खाते थे। एक दिन उनकी बहन ससुराल से वापस अपने पीहर आई थी। शाम को जब भाई अपने कामकाज से घर वापिस आ गये तो अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया की उसका आज नर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चाँद को देखकर उसको अर्ध्य देकर ही खा सकती है। चूँकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है। सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर छलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर ऐसा प्रतीत होता है की जैसे चतुर्थी का चाँद उदित हो रहा हो।
इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चाँद निकल आया है, तुम उसे अर्ध्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चाँद को देखती है, उसे अर्ध्य देकर खाना खाने बैठ जाती है।
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वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमे बाल निकल आता है और तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वो घबरा जाती है। उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत करती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है। सच्चाई से अवगत होने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुन्हा जीवित करके रहेगी। वह पूरे एक साल तक पति के शव के पास बैठी रहती है, उसकी देखभाल करती है, उसके ऊपर उगने वाली सुईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है।
एकसाल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सारी भाभियाँ करवा चौथ का व्रत रखती है। जब भाभियाँ उससे आशीर्वाद लेने आती है तो वह प्रत्येक भाभी से यम सुई ले लो पिय सुई दे दो मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है।
इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूँकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था इसलिए उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिन्दा न कर दे, उसे छोड़ना नहीं। ऐसा कहकर वो चली जाती है।
सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है लेकिन वह भी टालमटोल करने लगती है। इसे देखकर करवा उन्हें जोर से पकड लेती है और अपने सुहाग को जिन्दा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, धक्का देती है लेकिन करवा उसे नहीं छोडती। अंत में उसकी तपस्या देखकर भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अंगूली को चीरकर उसमे से अमृत उसके पति के मुख में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्री गणेश कहता हुआ उठता है, इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापिस मिल जाता है।
करवा चौथ में सरगी
खासकर पंजाब में करवा चौथ का पर्व सरगी के साथ आरम्भ होता है। सरगी करवा चौथ के दिन सूर्योदय से पहले किया जाने वाला भोजन होता है। इसमें खाने की वस्तुओ का जैसे- फल,मीठी मट्ठी, मिठाई आदि का समावेश होता है। जो सुहागने इस दिन व्रत रखती है उनकी सास उनके लिए सरगी बनाती है। सरगी सास की तरफ से बहू को दी जाती है, इसका सेवन महिलायें करवा चौथ के दिन सूर्य निकलने से पहले तारों की छाँव में करती है। सरगी के रूप में सास अपनी बहू को विभिन्न खाद्य पदार्थ एवं वस्त्र इत्यादी देती है। उसके बाद ही करवा चौथ व्रत का आरम्भ होता है।
करवा चौथ की पूजन विधि
प्रात:काल सुहागिनों को जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए उसके बाद यह संकल्प करके करवा चौथ व्रत का आरंभ करना चाहिए। गेरू और पीसे चावलों के घोल से करवा चित्र बनाया जाता है। आज कल तो बना बनाया कलेंडर मिल जाता है। पीली मिट्टी से माँ गौरी और उनकी गोद में गणेशजी को चित्रित किया जाता है। गौरी माँ की मूर्ति के साथ शिव भगवान व गणेश जी को लकड़ी के आसन पर बिठाते है। माँ गौरी को चुनरी बिंदी, आदि सुहाग सामग्री से सजाया जाता है। जल से भरा हुआ लोटा रखा जाता है। रोली से करवा पर स्वस्तिक बनाया जाता है। गौरी-शंकर जी की पूजा की जाती है और कथा सुनी जाती है। पति की दीर्घायु की कामना करते हुए कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ घूमाकर अपनी सास को करवा भेंट करते है और घर के बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद लेते है। रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद चंद्रमा को अर्ध्य देते है, इसके बाद पति से आशीर्वाद पाकर और पति के हाथ से पानी ग्रहण करने के बाद व्रत पूर्ण होता है।
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