भारतीय ज्योतिष में सम्पूर्ण अकाश मण्डल को 27 नक्षत्र व 12 राशियो में विभाजित किया गया हैं । नक्षत्र का शाब्दिक अर्थ हैं – जिसका क्षरण (क्षय) नही होता उसे नक्षत्र कहते हैं । प्राचीन काल से ही नक्षत्रो का प्रयोग होता आ रहा हैं । वेदो में भी इनका वर्णन मिलता हैं । इन 27 नक्षत्रो में कुछ तो अत्याधिक शुभ व कुछ अशुभ नक्षत्र होते हैं। इन 27 नक्षत्रो में केतु व बुध के अधिकार में आने वाले नक्षत्र गंड मूल कहलाते हैं। यें गंडमूल नक्षत्र अधिकतर अपने अंदर अशुभ व मारक प्रभाव रखते हैं। यें नक्षत्र हैं-
1- अश्विनी नक्षत्र- इस नक्षत्र का स्वामी केतु हैं। देवता अश्विनि कुमार हैं।
2- अश्लेषा नक्षत्र- बुध इस नक्षत्र के स्वामी हैं। सर्प देवता हैं।
3- मघा नक्षत्र- यह केतु का नक्षत्र हैं। पितृ देवता हैं।
4- ज्येष्ठा नक्षत्र – इस नक्षत्र के बुध स्वामी हैं। इंद्र देवता हैं।
5- मूल नक्षत्र- केतु स्वामी हैं। राक्षस इसके देवता हैं।
6- रेवती नक्षत्र- बुध स्वामी ग्रह हैं। पूषा(सूर्य) देवता हैं।
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में नक्षत्र, लग्न व राशि का संधि क्षेत्र अशुभ माना जाता हैं। गंड मूल नक्षत्रों के अशुभ प्रभाव देने का सबसे बडा कारण इनका संधि नक्षत्र होना होता हैं। गंडमूल नक्षत्रो के देवता भी अशुभ प्रभाव देने वाले होते हैं उन्ही का प्रभाव नक्षत्रो पर स्पष्ट चिन्हित होता हैं। यें नक्षत्र मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु व मीन राशी के आरम्भ व अंत में आते हैं। काल पुरुष चक्र के अनुसार इन राशियों का प्रभाव शरीर, मन, बुद्धि, आयु, भाग्य व संघर्ष पर पडता हैं। गंड मूल नक्षत्रो का इनही स्थानों पर अधिक प्रभाव देखने को मिलता हैं।
गंडमूल नक्षत्र का प्रभाव- गंडमूल नक्षत्र का प्रभाव माता पिता के स्वास्थ्य व आयु, स्वयं के स्वास्थ्य व आयु, घर परिवार, भाग्य को प्रभावित करने वाला होता हैं। इनका प्रभाव इस तरह से हो सकता हैं-
1- स्वास्थ्य मे दिक्क्त होना।
2- माता पिता को कष्ट व आयु भय।
3- जीवन मे नकारात्मक प्रभाव व संघर्ष।
4- दुर्घटना भय या जीवन में कष्टदायी स्थिति बनती हैं।
5- दरिद्रता व भाग्यहीनता का भय।
गंडमूल नक्षत्र के उपाय….
1. घर में शांति यज्ञ करें।
2. गौ, स्वर्ण, अन्न आदि का दान हर अमावस्या को दें।
3. किसी मंदिर में शिवलिंग स्थापित करें।
4. अश्लेषा नक्षत्र में जन्म हो तो सर्प को दूध पिलायें। नाग देव का पूजन करें।
5. अमावस्या के दिन ब्राह्मण भोजन करायें। और पित्रों के निमित्त दान करें।
6. माता या पिता 6 माह तक विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ त्रिकाल संध्या में करें।
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