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केमद्रुम योग



 
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क्‍या है केमद्रुम योग ?

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार केमद्रुम योग, चंद्रमा द्वारा निर्मित एक महत्वपूर्ण योग है। चंद्रमा से द्वितीय और द्वादश स्थान में किसी भी ग्रह के न होने पर केमद्रुम योग बनता है। इसके अलावा यदि चंद्र किसी ग्रह के साथ युति में न हो या चंद्रमा पर किसी अन्य शुभ ग्रह की दृष्टि न पड़ रही हो तो भी केमद्रुम योग का निर्माण होता है। ध्यान रहे इस योग के निर्माण में छाया ग्रह कहे जाने वाले राहु-केतु की गणना नहीं की जाती है।

माना जाता है कि यह योग ज्यादा अनिष्टकारी नहीं होता। इस योग में व्यक्ति को सदैव अशुभ प्रभाव ही नहीं मिलते अपितु इस योग में व्यक्ति को जीवन में आ रही परेशानियों से संघर्ष करने और जूझने की क्षमता एवं शक्ति भी मिलती है।

प्रभावित जातक

केमद्रुम योग से प्रभावित जातक स्त्री , अन्न , घर, वस्त्रृ और परिवार से विहीन हो जाता है। ये गरीब होते हैं। इनका कोई भी आय का साधन नहीं होता। यह जातक अपने पूरे जीवन इधर-उधर भटकते रहते हैं। यह अल्पबुद्धि, मलिन वस्त्र धारण करने वाले और नीच प्रवृत्ति के व्यक्ति होते हैं।

प्रभाव

केमद्रुम योग के बनने पर संघर्ष और अभाव से ग्रस्त जीवन व्यतीत करना पड़ता है। ज्योतिष शास्त्र में इस योग को दुर्भाग्य का सूचक कहा गया है। लेकिन यह तथ्य‍ पूरी तरह सत्य नहीं है। केमद्रुम योग में जातक को अपने कार्यक्षेत्र में सफलता के साथ-साथ मान-सम्मान भी प्राप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि कुछ विशेष योगों के बनने पर केमद्रुम योग भंग होकर राजयोग में परिवर्तित हो जाता है।

नुकसान

केमद्रुम योग के कारण जातक निर्धन बनता है एवं उसे अपना पूरा जीवन दुख में भोगना पड़ता है। केमद्रुम योग का मुख्य प्रभाव यह है कि इसके कारण जातक की आर्थिक स्थिति बदतर हो जाती है। उसकी आय के सभी साधन बंद हो जाते हैं। जातक के मन में भटकाव और असंतुष्टि की स्थिति बनी रहती है। यह व्यक्ति कभी आत्मनिर्भर नहीं बन पाते। इस योग में जातक को पारिवारिक सुख प्राप्त नहीं होता एवं संतान से कष्ट मिलता है। इस योग के प्रभाव में जातक की दीर्घायु होती हैं।

केमद्रुम योग का भंग होना

कुण्डली में लग्न से केन्द्र स्थान में चन्द्रमा या कोई अन्य ग्रह हो तो केमद्रुम योग भंग हो जाता है। इसके अलावा कुण्डली में कुछ अन्य स्थितियां बनने पर भी यह योग भंग होता है जैसे जब चंद्रमा ग्रह सभी ग्रहों से दृष्ट हो या शुभ स्थान में चंद्रमा हो अथवा चंद्रमा शुभ ग्रहों से युक्त हो एवं पूर्ण चंद्रमा लग्न स्थिति में हो या दसवें भाव में चंद्रमा ऊंचे स्थांन पर बैठा हो या केन्द्र स्थान में चंद्रमा पूर्ण बली हो या कुंडली में सुनफा- अनफा योग तथा दुरुधरा योग बन रहा हो तो ऐसी स्थिति में केमद्रुम योग भंग हो जाता है। केमुद्रम योग के भंग होने पर जातक इसके दुष्प्रभाव से मुक्त हो जाता है।

उपाय

  • इस योग के प्रभाव को कम करने के लिए सोमवार की पूर्णिमा अथवा सोमवार को चित्रा नक्षत्र के दौरान लगातार चार वर्ष तक पूर्णमासी का व्रत रखना चाहिए।
  • किसी भी सोमवार को भगवान शिव के मंदिर जाकर पवित्र शिवलिंग पर गाय का कच्चा दूध चढ़ाने एवं पूजन करने से लाभ होता है। इसके साथ ही भगवान शंकर और माता पार्वती का भी पूजन करें।
  • भगवान शिव की आराधना से इस योग के अशुभ प्रभाव को कम करने में काफी मदद मिलती है। रूद्राक्ष की माला से शिवपंचाक्षरी मंत्र " ऊँ नम: शिवाय" का जाप करें।
  • अपने घर में दक्षिणावर्ती शंख की स्थापना करें और नियमित रूप से श्रीसूक्त का पाठ करें। इस शंख में जल भरकर देवी लक्ष्मी की मूर्ति पर चढ़ाएं एवं चांदी के श्रीयंत्र में मोती धारण करें। इस मोती को हमेशा अपने पास ही रखें।
  • चद्रमा से संबंधित वस्‍तुओं का दान करें जैसे, दूध, दही, आईसक्रीम, चावल, पानी आदि।
  • चांदी का चौकोर टुकड़ा अपने पास रखें।
  • रोज़ाना श्रीसूक्‍त का पठ करें।
  • पूजा स्‍थल पर गंगा जल अवश्‍य ही रखें।
  • चांदी का श्रीयंत्र मोती के साथ धारण करें।
  • रुद्राक्ष की माला पहनें।
 
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