सदियों से श्रीकृष्ण का नाम लेने से पहले राधा जी का नाम लिया जाता है। कहते हैं कि राधा के बिना कृष्ण जी अधूरे हैं। इन दोनों का विवाह तो नहीं हुआ था लेकिन फिर भी ये दोनों एक ही थे। राधाजी के बना श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व अपूर्ण माना जाता है।
भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष अष्टमी को श्रीकृष्ण की प्रिय राधाजी का जन्म हुआ था। इस दिन को राधाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इस बार यह पर्व 29 अगस्त यानि मंगलवार के दिन मनाया जाएगा।
राधाष्टमी के दिन बरसाना की ऊंची पहाड़ी पर स्थित गहवर वन की परिक्रमा की जाती है। इस शुभ दिन पर बरसाना में उत्सव मनाया जाता है। सांस्कृतिक कार्यक्रम, धार्मिक गीमा और कीर्तन का आयोजन किया जाता है।
राधाष्टमी पर पूजन और व्रत करने का भी विधान है। इस दिन व्रत रखने से मनवाहा जीवनसाथी मिलता है और विवाह एवं प्रेम विवाह संबंधी परेशानियां दूर होती हैं।
व्रत एवं पूजन विधि
प्रात: काल स्नान के बाद अपने घर के पूजन स्थल में बैठकर पवित्र मन से व्रत का संकल्प लें। अब राधाजी जी की मूर्ति को पंचामृत से स्नान करवाएं। इसके बाद राधाजी का श्रृंगार करें और उन्हें मंदिर में स्थापित करें। दोपहर के समय मन ही मन राधाजी का नाम लेते रहें। धूप-दीप और आरती करने के बाद अंत में भोग लगाएं। राधा कृष्ण की संयुक्त रूप से पूजा करने पर दोगुना फल मिलता है।
इस दिन मंदिरों में 27 पेड़ों की पत्तियां और 27 कुओं का पानी इकट्ठा करना चाहिए। सवा मन दूध, दही, शुद्ध घी और बूरा तथा औषधियों से मूल शांति करवानी चाहिए। पूजन के अंत में पंचामृत से वैदिक मंत्रों के साथ राधाकृष्ण का अभिषेक करें। इस व्रत को करने वाला व्यक्ति पाप से मुक्त हो जाता है।
राधाष्टमी व्रत का समय
राधाष्टमी तिथि की शुरुआत : 29 अगस्त को 12 बजकर 36 मिनट पर आरंभ
राधाष्टमी तिथि की समाप्ति : 30 अगस्त को 2 बजकर 52 मिनट पर समाप्ति
ब्रज और बरसाने की राधाष्टमी
चूंकि बरसाने में ही राधाजी का जन्म हुआ था और ब्रज में उनका जीवन बीता था इसलिए इन दोनों जगहों पर राधाष्टमी को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इसके अलावा श्रीकृष्ण की नगरी वृंदावन और मथुरा में भी राधाष्टमी का उत्सव बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन राधाकृष्ण मंदिरों में राधा जी के भजन बजते रहते हैं।
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